संपादकीय
भ्रष्टाचार पर कसी जाए लगाम
भ्रष्टाचार की
गंभीर समस्या से ना केवल हमारा देश बल्कि पूरा विश्व ही कमोबेश जूझ रहा है। अंतरराष्ट्रीय
स्तर पर हर साल ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल संस्था द्वारा भ्रष्ट देशों की रेटिंग भी
होती है,जिन पर संबंधित देशों को कारगर कदम उठाने होते हैं लेकिन
अभी तक लगभग सभी देश इस दिशा में नाकाम ही सिद्ध हुए हैं। भ्रष्ट लोगों और भ्रष्ट
संस्थाओं को बेनकाब करने लिए जो दृढ़ इच्छा शक्ति चाहिए, उसका
नितांत अभाव ही नज़र आता है।आज के सोशियल मीडिया युग में भी अगर हम भ्रष्टाचार के
निवारण के लिए कदम नहीं उठा पाते हैं तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है। यह विडम्बना ही है
कि भ्रष्टाचार को खत्म करने अथवा इस पर सख्ती से लगाम कसने के लिए हम अभी तक कोई कारगर
मैकेनिज़्म विकसित नहीं कर पाये हैं। दिल्ली वाले
भ्रष्टाचार जैसे नासूर से कितने परेशान
हैं, इसका इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि पिछले एक महीने के
दौरान दिल्ली सरकार की हेल्पलाइन नंबर 1031 पर एक
लाख 10 हजार से ज्यादा भ्रष्टाचार की शिकायतें दर्ज हो चुकी हैं।
हालांकि इनमें से अब तक महज सात मामलों में ही 25 लोगों की
गिरफ्तारी हुई है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा 5 अप्रैल को तालकटोरा स्टेडियम में शुरू की गई हेल्पलाइन पर 30 दिनों के दौरान भ्रष्टाचार से संबंधित कुल 1 लाख 25 हजार फोन
आए, हालांकि इनमें से 110380 फोन ही
रिसीव हो पाए। अर्थात रोजाना चार हजार शिकायतें हेल्पलाइन पर आ रही हैं। हेल्पलाइन
पर फोन के जरिए दर्ज कराई गई शिकायतों में 6 हजार
शिकायतें गंभीर पाई गईं। इनमें से 510 मामलों
में शिकायत दर्ज की गई और 252 मामले
एंटी करप्शन ब्रांच को भेजे गए। इनमें सर्वाधिक शिकायतें स्थानीय निकायों, पुलिस, परिवहन
विभाग और जल बोर्ड जैसी सरकारी एजेंसियों के खिलाफ आई हैं। ये मुख्यत: आम जनता से
संबंधित बुनियादी जरूरतों से जुड़े मामले हैं। दिल्ली में लोगों की शिकायतें दर्ज करने के लिए 35 कॉल सेंटर बनाए गए हैं, जहां पर 1031 के जरिए फोन करके शिकायतें दर्ज कराई जाती हैं। सात शिकायतों में 25 सरकारी बाबुओं पर कार्रवाई हुई है और उन्हें गिरफ्तार किया
गया है। इसके अलावा कुछ अन्य मामलों पर एंटी करप्शन ब्रांच जल्द ही कार्रवाई करने
वाला है। सवाल यह है कि क्या भ्रष्टाचार
केवल निचले स्तर पर ही है ! ऊपर के स्तर पर भी स्थिति कोई संतोषजनक नहीं है। तत्काल
छापामार कार्यवाही के लिए कोई योजना ही नहीं है।स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार करने
वालों में कोई भय नहीं है। आम जनता परेशान है। नौकरशाही, जो जनता की गाढ़ी
कमाई से भरे गए सरकारी खजाने से मोटे वेतन
प्राप्त करती है, उनमें एक बड़ा तबका भ्रष्ट आचरण से बाज ही
नहीं आता। ‘पब्लिक डीलिंग’ से जुड़ा कोई
महकमा हो, वह भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं है। सरकार में बैठे
जनप्रतिनिधियों और अफसर यह बात भलीभाँति जानते हैं बल्कि इस कटु सत्य से अपनी
आँखें मूंदे हुए हैं।
देश के सभी राज्यों में दिल्ली
माडल के आधार पर भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए इस आधुनिक तकनीक का सही-सही इस्तेमाल
किया जाए तो भ्रष्टाचार बहुत कुछ कम किया जा सकता है। इतना अवश्य है कि भ्रष्टाचार
के नासूर को मिटाने के लिए कड़े कदम उठाने पड़ते हैं,सख्ती बरतनी पड़ती है
और अपनी मशीनरी को चुस्त और दुरुस्त बनाना पड़ता है। इसकी सारी योजना को लागू करने
के लिए सरकार को मुस्तैद होने की जरूरत है। अभी तो स्थिति यह है कि भ्रष्टाचार पर लगाम
लगाने वाली संस्थाएं ही पंगु बनी हुई हैं। वहाँ का आधारभूत ढांचा ही चरमराया हुआ
है। इन संस्थाओंमें कार्यकारी अधिकारियों और कार्मिकों के पद ही रिक्त पड़े हैं। एक
समस्या यह भी है कि यहां जितने अधिकारियों और कार्मिकों की वास्तविक आवश्यकता है
उतने पद भी सृजित नहीं हैं। होना तो यह चाहिए की जनता के नेक, ईमानदार और साफ सुथरे चरित्र के सेवभावी लोगों को साथ लेकर सरकार कोई
मैकेनिज़्म विकसित करे।
वैज्ञानिक युग की नई सूचना तकनीक ग्रामीण लोगों
के लिए थोड़ी मुश्किल भरी हो सकती है लेकिन
गांवों की नई पीढ़ी अब इससे परिचित होकर इसका लाभ उठाने के प्रति सजग दिखाई दे रही
है। उदाहरण के तौर पर देखें तो किसानों को मुआवजा राशि मिलने की शिकायत करने के लिए हरियाणा के
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्रसिंह हुड्डा द्वारा जारी की गई हेल्पलाइन पर सांसद
ग्राम योजना के तहत चुने गए गांव गुडियाखेड़ा के किसानों ने अपना दर्द नोट करवाया। किसानों ने फोन और इमेल के जरिए पूर्व
मुख्यमंत्री को बताया कि उन्हें प्रति एकड़ 150 रुपये ही मुआवजा
मिला है, जबकि अधिकतर
किसानों को खराब फसल का मुआवजा भी नहीं मिला । किसानों ने बताया कि उनके साथ धोखा हुआ है। उन्हें मुआवजा
राशि से वंचित रखा गया है। यह काम मीडिया भी आसानी से कर सकता है। कई मीडिया चैनल दर्शकों और
अखबार अपने पाठकों के लिए हेल्पलाइन का इस्तेमाल करते हैं। अगर सभी भ्रष्टाचार दूर
करने के लिए भी एक हेल्पलाईन शुरू करें तो यह भी एक बड़ी सेवा होगी।ऐसा नहीं सोचा
जाना चाहिए कि यह सरकार का काम है। मीडिया के जरिये भ्रष्टाचार के मामलों को उजागर
करने से भ्रष्ट लोग कुछ तो शर्म महसूस करेंगे और उन पर दबाव भी बढ़ेगा।
गौरतलब
है कि कोल ब्लॉक आवंटन घोटाला
मामले में राजनीति से गहरा सरोकार
रखने वाले बड़े नेताओं समेत 10 लोगों और पांच कंपनियों को आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी, विश्वासघात व भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम की धाराओं
में समन जारी कर आरोपियों को अदालत में पेश होने
का निर्देश दिया गया है। प्रधानमंत्री चुनावों से पूर्व जनसभाओं में इस बड़े मुद्दे के रूप में
पेश करते रहे हैं। ऐसे मामले आगे ना हों, इसकी गारंटी तो केवल सरकार ही दे सकती है। इधर दूसरी
ओर मुख्य सूचना आयुक्त
(सीआईसी), केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) और लोकपाल की
नियुक्ति अब तक नहीं हो पाने को आधार बनाते हुए प्रतिपक्ष में बैठी सोनिया ने पीएम पर पारदर्शिता के मुद्दे पर अपनी
बात से पलटने का आरोप लगाया । कहा जा रहा है कि सरकार आरटीआई अधिनियम को निष्प्रभावी बनाने पर तुली है। सरकार पर यह आरोप भी मढ़ा गया कि आम जनता
को अब सरकार से सीधे सवाल करने का अधिकार नहीं रह गया है। अभी तक सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट और कैग को आरटीआई के तहत जवाबदेह नहीं
होने और सार्वजनिक जांच से छूट थी, लेकिन केंद्र में नई सरकार आने के बाद अब इस दायरे में पीएमओ और
कैबिनेट सचिवालय भी आ गए हैं। आंकड़ों के जरिये सरकार पर वार किया गया कि पिछले आठ महीने से सीआईसी का पद खाली है और तीन
सूचना आयुक्तों के पद एक साल से खाली पड़े हैं जिसके चलते सूचना के अधिकार के 39 हजार मामले लंबित पड़े हैं। सूचना देने में देरी होना सूचना नहीं देने के समान है। ऐसे में सरकार के पारदर्शिता और सुशासन के वायदों को पुष्ट करने कि जरूरत है। गलत काम करने वालों को संरक्षण प्रदान करना किसी
सरकार के नैतिक मूल्यों का हिस्सा नहीं हो सकता।हालांकि केंद्र सरकार के गृह राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह का इस संबंध में कहना था कि सीआईसी पद पर नियुक्त के लिए चयन समिति अंतिम
रूप देने की प्रक्रिया में है,
जबकि सीवीसी का मामला
सुप्रीम कोर्ट में है। सरकार
का पक्ष कुछ भी हो लेकिन ऐसे प्रकरणों को प्राथमिकता से निपटाया जाए तो इससे सरकार
की प्रतिबद्धता झलकती है वहीं जनता को भी भ्रष्टाचार से राहत मिलने का मार्ग
प्रशस्त होता है।
अतिथि संपादक
फारूक आफरीदी
लेखक एवं पत्रकार