सोमवार, 11 मई 2015

संपन्नता के अपने अधिकार को कौन छोड़ता है ?

संपादकीय
संपन्नता के अपने अधिकार को कौन छोड़ता है ?

एक तरफ देश में आरक्षण का लाभ लेने के लिए विभिन्न जातियाँ लामबंद हो रही हैं और आंदोलन की जोरदार तैयारियां की जा रही हैं वहीं दूसरी ओर यह सुनने में आ रहा है कि संसद और राज्य की विधनासभाओं के पूर्व एवं वर्तमान सदस्यों के बच्चे ओबीसी कोटे के अंतर्गत आरक्षण के लिए पात्र नहीं हैं। बताया जाता है कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने सिफारिश की है कि उक्त आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए । इस संबंध में ओबीसी पैनल ने कहा है कि जो भी व्यक्ति संसद और राज्य विधानसभाओं के लिए चुन लिया जाता है उसका सामाजिक और आर्थिक स्तर बेहतर हो जाता है, ऐसे में उसे क्रिमीलेयर में आना चाहिए। यह प्रस्ताव उन शिकायतों के बाद दिया गया जिसमें यह कहा गया है कि जनप्रतिनिधियों के बच्चों को भी गैर-क्रिमीलेयर का प्रमाण पत्र जारी किया जा रहा है।पैनल ने यह भी प्रस्तावित किया है कि केन्द्र और राज्य सरकारों में प्रथम श्रेणी के अधिकारियों को भी आरक्षण के लाभों से बाहर किया जाना चाहिए। बावजूद इसके कि वह अधिकारी अपने पद पर सीधा नियुक्त हुआ हो अथवा प्रमोशन से उस पद पर पहुंचा हो। फिलहाल प्रथम श्रेणी का अधिकारी उन्हें ही माना जाता है जो सीधे पद पर नियुक्त हुए हैं। आयोग का कहना है कि कोई भी प्रथम श्रेणी का अधिकारी सामाजिक उन्नयन का वह स्तर पा लेता है, जहां उसे आरक्षण की कोई आवश्यकता नहीं होती। आयोग ने कहा कि प्रथम श्रेणी का वह अधिकारी, जो पदोन्नत होकर उस पद पर पहुंचा है, वो सीधे नियुक्त हुए अधिकारी से ज्यादा तनख्वाह पाता है। आयोग ने यह भी सिफारिश की है कि क्रीमीलेयर की आय सीमा को 6 लाख से बढ़ाकर साढ़े 10 लाख किया जाए। आयोग ने यह भी कहा है कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के लिए मंडल आयोग की सिफारिशें लागू नहीं होती। यह मसौदा आयोग ने सामाजिक न्याय मंत्रालय को भेजा है।

द्रमुक ने भी राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को आरक्षण लाभ के लिए क्रीमीलेयर का दायरा मौजूदा छह लाख रुपए से बढ़ाकर 10.5 लाख रुपए करने की सिफारिश का स्वागत किया और केंद्र से इसे स्वीकार करने की गुजारिश की है। पार्टी प्रमुख एम. करुणानिधि ने कहा कि द्रमुक का हमेशा से यह मानना है कि क्रीमीलेयर की कोई अवधारणा नहीं होनी चाहिए क्योंकि यह अन्य पिछड़ा वर्ग को बांटता है। उन्होंने एक बयान में कहा, यह मानते हुए कि क्रीमीलेयर की अवधारणा की वजह से 27 फीसदी आरक्षण कोटा यूपीए-एक के शासन में लाया गया, को सही तरीके से लागू नहीं किया जा सका और सरकार द्वारा दिया गया लाभ अन्य पिछड़ा वर्ग को नहीं मिल सका। उनका कहना है कि नरेंद्र मोदी नीत सरकार को पिछड़ा आयोग की सिफारिशों को मानना चाहिए और तुरंत आदेश जारी करने चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर सरकार प्रस्ताव को स्वीकार करती है तो ओबीसी के अंतर्गत आने वाले करोड़ों लोगों को केंद्र और राज्य सरकार के शैक्षिक संस्थाओं और सरकारी नौकरियों में अतिरिक्त आरक्षण का लाभ मिले सकेगा।

 

संभव है आगे चलकर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जाति आयोग भी इसी आधार पर कोई सिफारिशें करे। यह अलग बात है कि वैसे सामान्य वर्ग में हमेशा ही सुगबुगाहट बनी रहती है कि एससी-एसटी का आरक्षण आर्थिक आधार पर मिलना चाहिए ना कि वर्ग के आधार पर दिया जाए। संसद एससी-एसटी को आरक्षण देने की अवधि पहले ही बढ़ा चुकी है और फिलहाल इसके समाप्त होने के कोई आसार नहीं हैं। दूसरी ओर एक बार विधायक, सांसद और मंत्री, मेयर, जिला प्रमुख रह चुके जन प्रतिनिधि और अखिल भारतीय सेवा या उसके समकक्ष स्तर के अधिकारी भी इसका लाभ उठाना छोड़ दें तो यह एक बड़ी पहल हो सकती है। दुनिया में ऐसा कोई उदाहरण नहीं है कि संपन्न वर्ग ने अपने आपको मिली सुविधा को स्वेच्छा से कभी छोड़ा हो। यहाँ तो कानून बन जाने के बाद भी लोग गलियाँ ढूंढ लेते हैं और कानून को धता दिखा देते हैं।
लाभ छोडने की जहां तक बात है, सम्पन्न लोग प्रधानमंत्री की बारबार की जा रही अपील के बावजूद गैस सिलेन्डर पर मिल रही अपनी सबसिडी तक छोड़ने को तैयार नहीं है। देश की आबादी लगभग सवा अरब और 15.3 करोड़ गैस उपभोक्ता हैं। मार्च 2015 तक देश के केवल 3 लाख एलपीजी उपभोक्ताओं ने गैस पर मिलने वाली सरकारी सब्सिडी लेना छोड़ा है। होना तो यही चाहिए कि आर्थिक तौर पर सक्षम तमाम लोग गैस सब्सिडी लेने से खुद मना करें। देश का कारपोरेट जगत जो लाखों रुपये मासिक सेलेरी पैकेज लेते हैं, क्या उन्हें इस दिशा में नहीं सोचना चाहिए ! इसी तरह देश की बहुत बड़ी नौकरशाही जमात भी इसी दायरे में आती है। वे भी सब्सिडी का लाभ उठा रहे हैं और स्वेच्छा से छोड़ने को राजी नहीं हैं। प्रधानमंत्री ने दिल्ली में हुए ऊर्जा संगम सम्मेलन में कहा, ‘क्या देश में ऐसे लोग नहीं हैं जो कहें: हमें गैस सब्सिडी की ज़रूरत नहीं है। हम खुद कमाकर गैस खरीद सकते हैंउन्होंने मैं देशवासियों से अपील की : आइए, हम गिव इट अप केंपेन से जुड़ें और गैस सब्सिडी को छोड़ें।साथ ही सरकार सब्सिडी से हुई बचत का इस्तेमाल गरीबों तक सस्ती गैस पहुंचाने में करना चाहती हैप्रधानमंत्री का इशारा आने वाले दिनों में तेल-गैस आयात पर निर्भरता घटाने की पहल को लेकर भी थाउन्होंने 2022 तक उर्जा से स्रोतों के आयात पर निर्भरता दस फीसदी तक घटाने की मंशा भी दर्शाई।देश के लाखों एलपीजी उपभोक्ताओं तक गैस सब्सिडी का फायदा सीधे उनके बैंक खातों तक पहुंचाने में सफलता के बाद अब प्रधानमंत्री गैस सब्सिडी पुनर्गठित करने की दिशा में सरकार की कोशिश को और आगे बढ़ाना चाहते हैं। गैस सब्सिडी छोड़ो मुहीम उनकी इसी रणनीति का एक अहम हिस्सा है।प्रधानमंत्री को बजाय अपील के अब कानून बनाकर सक्षम लोगों की सब्सिडी एक झटके में खत्म करने का फैसला करने की जरूरत है ।
गौरतलब है कि इन जनप्रतिनिधियों के वेतन भत्ते बिना बहस के लोकसभा से लेकर विधानसभाओं तक में पारित हो जाते हैं।यही नहीं ये भत्ते कई गुना बढ़ जाते हैं। विपक्ष मेन बैठी पार्टियां भी ऐसे समय चुप्पी साध लेती हैं और कहीं कोई विरोध नहीं होता। यह सारा धन जनता की गढ़ कमा का ह हिस्सा होता है। इसी प्रकार कई मंत्रियों और अधिकारियों को को जब  कई विभागों का अतिरिक्त प्रभार मिलता है तो उन विभागों की गाड़ियों का भी बेजा इस्तेमाल किया जाता है।जाहीर है इंका बेजा इस्तेमाल करने वालों मेन इनके परिवार सबसे आगे रहते हैं और कोई रोकने–टोकने वाला नहीं होता। ऐसे में क्या ये मंत्रीगण और अधिकारीगण स्वेच्छा से इन सुविधाओं का लाभ नहीं छोड़ सकते! सरकार नियम बनाकर इस प्रकार के दुरुपयोग को रोक सकती है।

अतिथि संपादक
फारूक आफरीदी

लेखक और पत्रकार      

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