गुरुवार, 15 जनवरी 2015

सूचना के अधिकार कानून के बुरे दिन



संपादकीय

सूचना के अधिकार कानून के बुरे दिन

 

देश में आम आदमी को जन हित की योजनाओं और कार्यक्रमों के बारे में जानने या सूचना पाने का अधिकार देने के लिये दस साल पहले यूपीए सरकार के दौरान संसद ने जो कानून पारित किया था, वह इन दिनों बुरे दौर से गुजर रहा है। आज हालात ये हैं कि सूचना के अधिकार के तहत बार-बार मांगने पर भी सरकारी विभागों से सूचनाएं नहीं मिल पाती या अधिकारी आधी-अधूरी सूचनाएं देकर जैसे-तैसे अपना पिंड छुड़ाकर इतिश्री कर लेते हैं। क़ानून बनने के बाद राज्यों में सूचना आयोग तो बना दिये गए हैं लेकिन उनमें पर्याप्त संख्या में सूचना आयुक्त और सक्षम कार्यकारी स्टाफ सेवारत नहीं हैं। इन आयोगों के सुचारु संचालन की ज़िम्मेदारी मूलत: राज्य सरकारों की है, लेकिन यह विषय जैसे उनकी प्राथमिकता सूची में ही नहीं है। सामाजिक और स्वयंसेवी संगठन इस संस्था की सक्रियता बनाए रखने को लेकर निरंतर अदालतों के दरवाजे खटखटाते रहते हैं तब भी सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती। ऐसा लगता है कि सूचना का अधिकार सरकार के लिए गले की घंटी और उस पर परेशानी के बादल जैसे हैं।
देश में सूचना के अधिकार कानून को सबसे पहले लागू करने में राजस्थान प्रदेश अग्रणी रहा है,लेकिन यहां मुख्य आयुक्त के अलावा सिर्फ एक सूचना आयुक्त काम कर रहा है। राज्य सूचना आयोग में आने वाली दूसरी अपील के लगभग 16 हजार आवेदन विचाराधीन हो गए हैं। अपील की सुनवाई के लिए लोगों को जनवरी 2016 तक की तारीख दी जा रही है। ऐसे में इस कानून की क्या उपयोगिता और प्रासंगिकता रह जाती है।सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के मामले में यहां हालत बहुत खराब रही है। राजस्थान में सूचनाएं मांगने वालों का जो फ़्लो बना हुआ है और बढ़ती जागरूकता के कारण जितने प्रकरण आ रहे हैं, उनके निपटारे और पेंडिंग अपीलों की सुनवाई कर फैसलों के लिए राज्य में दस सूचना आयुक्त हो सकते हैं। लगभग तीन चार साल से यहां एक ही सूचना आयुक्त टी. श्रीनिवासन काम कर रहे हैं। अब एक सूचना आयुक्त और लगाया गया है।
सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के बारे में सुप्रीम कोर्ट के नए निर्देशों के कारण उन्होंने छह माह से ज्यादा समय तक काम नहीं किया। इससे अपीलों की संख्या बहुत बढ़ गई। राज्य सरकार को जनहित में आयोग में जरूरत के अनुरूप आयुक्तों की संख्या बढ़ाने पर विचार कर निर्णय लेना चाहिए।दरअसल सूचना के अधिकार कानून के तहत पहली अपील में तो एक माह में सुनवाई का प्रावधान है,लेकिन दूसरी अपील जो सूचना आयुक्त के यहां होती है, वहां सुनवाई के लिए कोई निश्चित समय सीमा नहीं है।ऐसे में अपीलों की सुनवाई पर डेढ़ साल तक का समय दिया जा रहा है। सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में कोई बड़ी समस्या भी नहीं है,क्योंकि मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष और एक कैबिनेट मंत्री की समिति इनका चयन करती है।
यहां यहकहना प्रासंगिक होगा कि सूचना का अधिकार कानून एक बड़ी पहल थी।इस कानून के लागू होने के बाद महानरेगा सहित कई बड़े मामलों में अनियमितता और भ्रष्टाचार  उजागर हुए।लेकिन,दस सालों के बाद सूचना के अधिकार की स्थिति आज एक प्रकार तरह से चिंतनीय होती जा रही है।विकास,निवेश,स्वच्छता अभियानों आदि की आंधी में सूचना का अधिकार कहीं खो गया है।केन्द्र या राज्य सरकारो के एजेंडे में यह कहीं नजर नहीं आता। इसकी राह का सबसे बड़ी बाधा यह है कि सूचना आयोगों में लंबित मामलों की तादाद उतरोत्तर बढ़ती जा रही है। कई अपीलों के निपटारे में दो साल से तीन साल या इससे भी ज्यादा समय लगना आम बात है, जिससे सूचना के अधिकार कानून के अप्रासंगिक हो जाने की स्थिति पैदा हो गयी है।
राष्ट्रीय सूचना आयोग में ही पिछले साल अगस्त तक सात हजार छह सौ से अधिक मामले विचाराधीन थे।नवंबर तक इनकी तादाद बढ़ कर दस हजार से ऊपर पहुंच गई।लंबित मामलों और पदों के रिक्त रहने की समस्या राष्ट्रीय सूचना आयोग तक ही सीमित नहीं है।राज्यों में हालात और खराब दिखाई देते हैं।आयुक्तों के पद समय से नहीं भरे जाते, तो इसकी खासकर दो वजहें हैं। एक तो यह कि सरकारों की दिलचस्पी इसमें नहीं होती कि आयोग अपनी पूरी क्षमता से काम करें और दूसरे, वे अपने चहेतों को सूचना आयुक्त बनाने के फेर में रहती हैं। सूचना आयोगों का गठन इसलिए किया गया था कि अगर प्रशासनिक अधिकारी निर्धारित समय में मांगी गई सूचना देने से मना करें तो आगे अपील की जा सके,लेकिन अगर अपील पर सुनवाई के लिए बरसों इंतजार करना पड़े,तो इस क़ानून के इस्तेमाल को निरर्थक साबित करने जैसा ही व्यवहार है।
सूचना देने के मामलों में लापरवाही का एक बड़ा कारण यह है कि सूचना देने से इनकार करने या आनाकानी करने वाले अधिकारियों में अभी यह भय नहीं है कि वे दंडित किए जा सकते हैं। छोटे-मोटे दंड से तो वे घबराते ही नहीं, अलबत्ता जेल जाने से थोड़ा घबराते हैं क्योंकि इसमें उनकी नौकरी जाने का खतरा मौजूद रहता है। यों सूचना के अधिकार कानून के तहत दंडात्मक कार्यवाई का प्रावधान है, परंतु कई अध्ययन बताते हैं कि ऐसे मामलों को अंगुलियों पर गिना जा सकता है,जिनमें इस प्रावधान का प्रयोग हुआ हो।बहरहाल,इस कानून को भ्रष्टाचार से लड़ने का एक कारगर हथियार बनाए रखना और बचाना आवश्यक है। इसके लिए जरूरी है कि सूचना आयोगों की शक्ति और संसाधन दोनों को बढ़ाया जाए।अपराध करने,इन्हे बढ़ावा देने और अनियमितता बरतने वालों के मन में भय पैदा हो।

हाल ही दिल्ली हाईकोर्ट ने एक याचिका पर फैसला दिया है कि किसी दूसरे साधन से सूचना मिलने पर भी आरटीआई का उपयोग किया जा सकता है और इसके जरिए सूचना हासिल करने की मांग की जा सकती है।याचिका में नगरीय विकास मंत्रालय और सीबीआई के अफसरों के बीच भ्रष्टाचार के मामले में हुई बातचीत का खुलासा करने की अपील की गई थी।लेकिन मंत्रालय ने संबंधित कोर्ट केस में बाधा पड़ने के आधार पर जानकारी देने से मना कर दिया था। आरटीआई अर्जी लगाने वाला सूचना आयुक्त के पास गया। आयुक्त ने भी मंत्रालय के सूचना देने को जायज करार दिया था। इसके बाद हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई जिस पर जस्टिस विभु बखरु ने कहा कि कोई कारण नहीं बताया गया कि मांगी गई जानकारी का खुलासा करने से मुकदमे में कैसे बाधा आएगी।याचिकाकर्ता ने जो सूचना मांगी है वह प्रासंगिक या आवश्यक है या नहीं यह भी सूचना हासिल करने के लिए कोई शर्त नहीं है। ऐसे में याचिकाकर्ता को सूचना हासिल करने से नहीं रोका जा सकता।

जनसेवा की दृष्टि से समय-समय पर अनेक आयोगों का गठन होता रहा है।प्रदेश में उनकी दशा कमोबेश सूचना आयोग जैसी ही है। इन महत्वपूर्ण आयोगों में अध्यक्ष और सदस्यों के रिक्त पदों के चलते काम नहीं हो रहा एवं नागरिक परेशान हो रहे हैं। राज्य उपभोक्ता संरक्षणआयोग,मानव अधिकार आयोग, अल्पसंख्यक आयोग,बाल संरक्षण आयोग,नि:शक्तजन आयोग आदि में पद खाली पड़े हैं।इससे इन आयोगों का होना भी कोई अर्थ रखता। नई सरकार अपने गठन का एक साल पूरा होने का जश्न भी मना चुकी है। ऐसे में सरकार के कामकाज और उसकी मंशा पर भी प्रश्न चिन्ह लगता है।पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आयी सरकार को यथाशीघ्र फैसले कर जनता की बढ़ती जा रही मुश्किलों का समाधान करने का मार्ग प्रशस्त करना होगा,तभी आमजन में नए विश्वास का संचार होगा।  -फारूक आफरीदी


शनिवार, 10 जनवरी 2015

हमें प्रवासी भारतवंशियों का विश्वास जीतना होगा



         
संपादकीय

हमें प्रवासी भारतवंशियों का विश्वास जीतना होगा

गुजरात के गांधीनगर में 13वें प्रवासी भारतीय दिवस में भारतवंशियों से देश के विकास में और ज्यादा जुडने की अपील करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भले यह कहा हो कि नयी मजबूती से भारत का 'उदय' होने के साथ उनके लिए देश में बहुत सारी संभावनाएं इंतजार कर रही हैं लेकिन इसके लिए उन्हें भारत को तैयार भी करना होगा।हमें भारतवंशियों का सहयोग लेना है तो उसके अनुरूप आचरण भी करना होगा, जो केवल बातों से संभव नहीं होगा। मोदी ने यह भी कहा कि पूरी दुनिया बड़ी उम्मीदों के साथ भारत की तरफ देख रही है और उसमें विश्वास एवं क्षमता की जरुरत है।यही विश्वास और क्षमता जगाने की ही तो  जरूरत है।यह किसी से छिपा नहीं कि अभी प्रवासी बंधु भारत के साथ अपना हाथ बढ़ाने में हिचकिचाते हैं और यह एक कटु सच्चाई है।वजह साफ है,क्योंकि हम जो लच्छेदार बातें प्रवासियों के बीच करते हैं उसमें दम नहीं होता क्योंकि व्यवहार के स्तर पर हम खरे नहीं उतरते।हम अपनी कार्यप्रणाली को जब तक लचीला, पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त नहीं बनाते तब तक किसी प्रवासी से कोई अनुकूल आशा नहीं कर सकते। महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने के 100 साल पूरे होने के बीच इस साल प्रवासी दिवस मनाया जा रहा है।
भारतवंशियों को देश की 'बडी पूंजी' बताते हुए प्रधानमंत्री ने 200 से अधिक देशों में रह रहे इन ढाई करोड लोगों के इस समुदाय से देश को बदलने में मदद करने की अपील की हैभारतवंशी सचमुच बड़ी पूंजी तभी साबित होंगे जब हम उनका विश्वास हासिल कर पाएंगे।  मात्र यह कहने से काम नहीं चलेगा कि भारतीय मूल के लोग हमारी पूंजी और ताकत हैं। प्रधानमंत्री ने दुनिया भर में देश के सम्मान के निर्माण की बात भी कही है। यह सम्मान वास्तविक रूप में स्थापित करने के ठोस कदमों की आवश्यकता है। देश में शांतिपूर्ण और सदभावपूर्ण वातावरण को बहाल करने की भी महती आवश्यकता है।प्रधानमंत्री का यह कहना भी एक सच्चाई है कि भारत को बदलने में सरकार केवल 'पाउंड स्टर्लिंग और डॉलर' में रुचि नहीं रखती, लेकिन भारतवंशियों के दिमाग में तो यही है कि हमारा देश उनसे केवल पूंजी निवेश की ही आशा रखता है जबकि उन्होंने विदेशों में अपने उद्यम और पुरुषार्थ के बल पर धन और यश अर्जित किया है। भारत उनके साथ भावनात्मक ब्लेकमेल करके सहयोग लेना चाहता है। ऐसे में उनके दिमागों को साफ करना होगा। ऐसे प्रवासी सम्मेलन पहले भी हुए और सहयोग की अपीलें भी हुई, लेकिन नतीजे ढाक के तीन पात ही रहे। हमें यह मानकर चलना चाहिए कि प्रवासी बंधु तभी आएंगे जब उन्हे यहां पूंजी निवेश में मुनाफा दिखाई देगा।उनको जब महसूस होगा कि सरकारी मशीनरी का रवैया उनके साथ परेशानी से भरा, उलझाऊ और उनका समय बर्बाद करने वाला नहीं है तो वे जरूर आएंगे। उन्हें भारत के साथ भावनात्मक दृष्टि से भी जोड़े रखना हमारा दायित्व बनता है। प्राकृतिक आपदाओं के समय उनका मदद करना एक अलग बात है। ऐसी सहायता तो पीड़ित मानवता की सेवा समझकर कोई भी कर देता है, इसमें भारतीय प्रवासी होना जरूरी भी नहीं।             
केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश के माध्यम से पीआईओ और ओसीआई कार्ड को मिलाने और कई देशों के लिए आगमन पर वीजा की सुविधाएं उपलब्ध कराने के संदर्भ में प्रवासी भारतीयों से किये गये वादों को पूरा करने की बात भी कही लेकिन अभी भी इसमें जो पैंच फंसा हुआ है वह दूर होना चाहिए। नौकरशाही की अड़ंगेबाजी दूर होनी चाहिए।इस सम्मेलन में सम्मिलित करीब 4000 भारतवंशियों को मोदी से बहुत उम्मीद है।जाहिर है इनमें से कुछ व्यापार विस्तार की आशाएँ लेकर आए हैं तो कुछ लोगों का मकसद इस सम्मेलन के बहाने भारत पर्यटन है,क्योंकि इन दिनों विदेशों में घूमने-फिरने के लिए छुट्टियाँ रहती हैं। यह सही है एक समय था जब ये प्रवासी अवसरों की तलाश में अपने प्रिय देश को छोडकर दुनिया के विभिन्न हिस्सों में गए थे।अब समय के तेजी से बदलने और भारत के नयी ताकत के साथ उभरने के साथ बहुत सारी संभावनाएं बढ़ी हैं।इसके विपरीत ग्लोबलाईजेशन के साथ सभी देश बाहरी प्रवासियों से अपने यहां पूंजी निवेश के लिए सभी संभव जतन कर रहे हैं और रियायतों एवं सुविधाओं को लेकर भारी प्रतिस्पर्धा है। ऐसे में पूंजीनिवेश वहीं होगा जो सर्वाधिक सुरक्षित होगा।    
इस सम्मेलन को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से जोड़ने का प्रयास सराहनीय है।इस बहाने हमारे प्रवासी बंधु गांधीजी से कुछ तो परिचित होंगे। यहां यह कहना प्रासंगिक होगा कि आजादी के बाद जन्मी प्रवासी बंधुओं और उनकी युवा पीढ़ी को गांधीजी के जीवन दर्शन, उनके त्याग और अहिंसा के सिद्धान्त से देश को मिली खुली सांस के महत्व को समझाने की सबसे ज्यादा जरूरत है। केवल स्वछता ही गांधी का एकमात्र संदेश नहीं है। गांधीजी का पूरा जीवन ही अपने आप में एक संदेश है। यह बिलकुल सही है कि मानव विकास और दुनिया के सामने मौजूद चुनौतियों के हल के लिए उनका दर्शन और शिक्षाएं आज भी दुनिया को प्रेरित कर रही हैं।इसी को स्वीकार करते हुए यूपीए सरकार के प्रयासों के फलस्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ ने उनके जन्मदिवस को अहिंसा दिवस के रूप में घोषित किया।इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि महात्मा गांधी के दर्शन से बेहतर कुछ नहीं है। मोदी की भारतवंशियों से स्वच्छ गंगा मिशन में शामिल होने की अपील इसलिए महत्वपूर्ण माना जा सकता है कि यह अभियान धार्मिक होने के साथ पर्यावरण के लिहाज से भी उपयोगी है।         
इसमें भी कोई दो राय नहीं कि  विश्व के लोग हर भारतीय को सम्मान की नजर से देखते हैं। उनका अमीर होना इसका कारण नहीं है, बल्कि भारत के गौरवशाली इतिहास, परंपरा और हमारे जीवन मूल्यों की वजह से उनका आदर होता है। ऐसे में हर प्रवासी भारतीय का  दायित्व है कि वह  देश की तरक्की में अपना योगदान दे।यह भी सही है कि आजादी के बाद अधिकांश समय तक केन्द्र में कांग्रेस का शासन रहा जिस पार्टी का सवा सौ वर्षों से ज्यादा का समृद्ध इतिहास है और जिसके महान नेताओं की दुनिया में धाक रही है और यह बार पहली बार है कि भाजपा ने नरेन्द्र मोदी के अकेले बलबूते पर पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता संभाली है। इस सरकार की आर्थिक नीति, विदेश नीति सहित विभिन्न मोर्चों पर अभी परख होनी है। यह समय मोदी के सामने अग्निपरीक्षा का है जिस पर उन्हें खरा उतरकर दिखाना है। उनके नेतृत्व को लेकर दुनिया का हर देश भारत की ओर देख रहा है। इसके लिए उनका अपने छह महीने के कार्यकाल में 50 से अधिक विश्व नेताओं से मिलना ही सफलता का पैमाना नहीं है। उन्हें सभी देशों का विश्वास अपनी कार्य शैली और नतीजों से जीतना होगा। गांधीजी ने हर व्यक्ति के मन में स्वतंत्रता की भावना जागृत की थी। उन्होंने इसे एक जनआंदोलन बनायाविविध धर्मों, समुदायों, भाषाओं और संस्कृतियों के इस देश में सदभाव स्नेह और सभी के प्रति सम्मान की यह भावना आज भी उतनी ही महत्व रखती है और इसे बरकरार रखना होगा।इसके लिए व्यापक दृष्टि का परिचय देना होगा जो प्रधानमंत्री के लिए उनके ही अपने पार्टी नेताओं के कारण चुनौती बना हुआ है। 
-फारूक आफरीदी

बढ़ते साइबर अपराधों से सख्ती से निपटना होगा



संपादकीय
बढ़ते साइबर अपराधों से सख्ती से निपटना होगा
       भारत में बढ़ते साइबर अपराध समाज और सरकार के लिए जिस तेजी से बढ़ रहे हैं,उन्हें देखते हुए हमें सख्ती से निपटना होगा और हमें अपनी टेक्नोलोजी को आधुनिक और नवीनतम प्रणालियों के अनुरूप विकसित करना होगा अन्यथा इसके गंभीर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना होगा।हमें गंभीरता से सोचना होगा कि गंदी मानसिकता रखने वाले घोटालेबाजों ने साइबर तकनीक से लैस प्रशासनिक व्यवस्था का दुरुपयोग करने के तरीके भी खोज निकाले हैं।परेशानी और चिंता की सबसे बड़ी बात यह है कि अगर कोई हैकर नगरीय निकाय की व्यवस्था का अतिक्रमण कर विश्वसनीय ढंग से फर्जी पहचान स्थापित कर सकता है तो वह एक पासपोर्ट, पर्मानेंट अकाउंट नंबर (पैन कार्ड) भी हासिल कर सकता है। अगर वह जमीन की रजिस्ट्री के कार्यालय के कंप्यूटरों तक पहुंच बना ले तो वह जमीन-जायदाद के रिकॉर्ड के साथ भी छेड़छाड़ कर सकता है।सरकार हर स्तर पर सूचना प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल में इजाफा कर रही है। स्मार्ट सिस्टम आ जाने से प्रशासनिक व्यवस्था में बड़े पैमाने पर सुधार होने के साथ काम की गति में तेजी भी आ रही है। इतना ही नहीं इससे भ्रष्टाचार और शोषण की आशंका भी कम होती है। देश के विभिन्न संयंत्रों, राज्यों, क्षेत्रों के बीच बिजली की मांग और आपूर्ति का संतुलन साइबर सुविधा के अध्यम से ही रखा जाता है और वोल्टेज आदि की पूरी निगरानी रखी जाती है। इस काम को कंप्यूटर के जरिये अंजाम देना होता है क्योंकि यह इंसान के वश की बात नहीं है। क्षेत्रीय पॉवर ग्रिड्स एक दूसरे से जुड़े होते हैं।लेकिन एक कंप्यूटर मैलवेयर जैसा कोई प्रोग्राम पॉवर ग्रिड को ठप कर सकता है, ठीक उसी तरह जैसे उसने ईरान के परमाणु संयंत्रों को किया। हवाई अड्डे, रेलवे और बंदरगाह सभी ऐसे ही नेटवर्क काफी संवेदनशील हैं। नागरिकों को सुविधाएं प्रदान करने वाली प्रणालियां मसलन आयकर रिटर्न, टैक्स रिफंड और पासपोर्ट एप्लीकेशन या फिर लोगों से प्रत्यक्ष रूप से असंबद्ध व्यवस्थाएं मसलन, नैशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो, भारतीय रिजर्व बैंक, वित्त मंत्रालय और सड़क, जहाजरानी, रक्षा मंत्रालय आदि भी काफी संवेदनशील हैं। इन सभी के पास ऐसी सूचनाएं होती हैं जिनका इस्तेमाल प्रतिस्पर्धात्मक लाभ के लिए या फिर राष्ट्रीय सुरक्षा को भंग करने के लिए किया जा सकता है। ऐसे में जरूरी है कि न केवल इनकी सुरक्षा की जा सके बल्कि किसी आपदा से तत्काल निपटा जा सके। ऐसे अनेक उदाहरण मौजूद हैं जिनमें विभिन्न सरकारी वेबसाइटों को हैक कर उनके साथ छेड़छाड़ की गई। लेकिन इस खतरे से बचने के लिए जरूरी कदम अब तक नहीं उठाए गए हैं।
        देश में खुफिया एजेंसियां इंटरनेट पर सूचनाओं के प्रवाह पर नजर रखती हैं लेकिन इसके लिए कुछ और अहम कदम उठाए जाने की जरूरत है। यद्यपि गृह मंत्रालय ने देश में साइबर अपराध पर नियंत्रण के लिए एक समिति बनाई है जो निजी और सार्वजनिक क्षेत्र, एनजीओ और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ संभावित साझेदारी के लिए सुझाव देने के अलावा साइबर अपराध से जुड़े सभी पहलुओं पर सिफारिशें देगी। बेंगलूरु के शोध संगठन सेंटर फॉर इंटरनेट ऐंड सोसाइटी के कार्यकारी निदेशक सुनील अब्राहम के मुताबिक यह एक ऐसा दौर है जब व्यापक पैमाने पर निगरानी के बजाए लक्षित निरीक्षण जरूरी हो गया है। इसके लिए कुछ खास अकाउंट या प्रोफाइल की नियमित निगरानी जरूरी है। आए दिन बढ़ते साइबर अपराधों के कारण सवाल उठाए जा रहे हैं कि आखिर भारत का अपना सुरक्षा तंत्र राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े इन खतरों की पहचान क्यों नहीं कर पाता है? ज्यादातर इनटरनेट कंपनियों का मुख्यालय भारत से बाहर है और इन नेटवर्कों से सूचनाएं हासिल करने में भारत को दिक्कत महसूस होती है। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि साइबर आतंकवाद के बढ़ते खतरे की वजह से गूगल, ट्विटर और फेसबुक जैसी कंपनियां और सरकारी कंपनियां पहले के मुकाबले ज्यादा सहयोग कर रही हैं। इस सहयोग को प्रभावी बनाकर पर्याप्त सफलता हासिल की जा सकती है। पूरी दुनिया में लगभग 100 लोग ही हैं जो पूरे विश्व के साइबर अपराधों के लिए ज़िम्मेदार हैं।यूरोपीय संघ के यूरोपोल्स साइबरक्राइम सेंटर के प्रमुख ट्रोएल्स ओएर्टिंग के अनुसार हम बमुश्किल ही उन्हें जानते हैं।अगर हम इन लोगों को बाहर कर देते हैं तो बाक़ी अपने आप ढह जाएंगे। साइबर अपराधों से जूझना बहुत कठिन काम है और ऐसे लोगों की संख्या बढ़ने ही वाली है।हम उनका सामना कर सकते हैं लेकिन अपराधियों के पास ज़्यादा संसाधन हैं और वे लालच और मुनाफ़े के लिए काम कर रहे हैं। हम जितनी रफ़्तार से उन्हें पकड़ रहे हैं वे उससे ज़्यादा तेज़ी से मालवेयर (कम्प्यूटर वायरस) बना रहे हैं। साइबर अपराध का सामना करने में सबसे बड़ी मुश्किल ऐसे अपराधियों का किसी देश और सीमा के परे होना है। मुश्किल यह भी है कि अपराधी हमारे देश में आते नहीं है।वे बहुत दूर बैठकर अपराध करते हैं और सामान्य उपायों से हम उन्हें नहीं पकड़ सकते।साइबर अपराध से जुड़े ज़्यादातर प्रमुख अपराधी रूसी भाषा बोलने वाले क्षेत्रों के हैं। साइबर अपराधी मालवेयर को ऑनलाइन फोरम में बेच रहे हैं।
       आम लोगों को अपनी निजी एवं संवेदनशील जानकारियों की सुरक्षा के बारे में सोचना होगासाइबर अपराधी थोड़ी सी जानकारी पाकर लोगों के गूगल, फ़ेसबुक या आई फ़ोन अकाउंट में बदलाव कर सकते हैं। इंटरनेट प्रयोग करने वालों की बढ़ती संख्या ने उनके काम को थोड़ा और मुश्किल बना दिया है। गौरतलब है कि जनवरी 2013 में राजस्थान में हनीमून मनाने आए दंपति की अश्लील फिल्म बनाकर पोर्न वेबसाइटों पर डालने के मामले में नोएडा साइबर अपराध शाखा ने राजस्थान के होटल के मालिक और ग्रेटर नोएडा में रहने वाले डोमेन नेम के रजिस्ट्रार को गिरफ्तार किया। गिरफ्तार दोनों युवकों ने खुलासा किया कि उनके साथ मथुरा, राजस्थान, गोवा, हरियाणा, महाराष्ट्र, पंजाब और उत्तराखंड के कई होटल मालिक और मैनेजर इस धंधे में जुड़े हैं।पुलिस ने इनकी सूचना के आधार पर राजस्थान के दौसा जिले के मेंहदीपुर बालाजी में स्थित एक होटल के मालिक को गिरफ्तार कर लिया जहां पर नोएडा के दंपती का हनीमून वीडियो बना था।यह रैकेट देश ही नहीं फ्रांस, जर्मनी, इंग्लैंड और अमेरिका तक फैला है।पुलिस के अनुसार गिरफ्तार दोनों युवकों के नाम से छह पोर्न वेबसाइटें पंजीकृत हैं। ये लोग अश्लील एमएमएस और वीडियो सीडी भी मार्केट में बेचते हैं।
       र्ष 2008  में हुए 26/11मुंबई आतंकी हमले से जुड़ी टीम ने उन ज्यादातर सवालों के जवाब पा लिए जिन पर देश और दुनिया के लोगों की निगाहें थीं लेकिन वास्तव में वर्ष 2009  में अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफबीआई ही इस आतंकी हमले के सूत्रधार तक पहुंचने में कामयाब हुई। उन्होंने इस आतंकी हमले की साजिश करने वाले शख्स डेविड हेडली तक पहुंचने में कामयाबी पाई जो इस मामले का सबसे अहम सरगना था। पांच साल के बाद भारत के सामने लगभग ऐसी ही स्थिति पैदा हुई जब बेंगलूरु के मेंहदी मसरुर बिस्वास को कथित तौर पर आतंकवादी संगठन आईएसआईएस समर्थित ट्विटर अकाउंट को संचालित करते हुए पाया गया।देश में पिछले दो साल के दौरान साइबर अपराधों में 40 फीसदी की सालाना वृद्धि हुई है। इनमें वेबसाइट्स की हैकिंग इन साइट्स पर अश्लील सामग्री परोसना, क्रेडिट कार्ड व बैंकिंग धोखाधड़ी के मामले शामिल है। इस वृद्धि से चिंतित केंद्र सरकार ने इससे निपटने की प्रभावी रणनीति तैयार करने के लिए विशेषज्ञ समूह का गठन किया ।गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2013  में साइबर अपराध के 71 हजार 780 मामले सामने आए थे जबकि 2012 में इनकी संख्या 22 हजार थी। लेकिन इस साल जून तक  साइबर अपराध की 62 हजार 189 घटनाएं सामने आ चुकी थीं। 2013 में दुनियाभर में फैले विभिन्न हैकर समूहों द्वारा भारत की 28 हजार 481 वेबसाइट्स हैक की गई थीं। हैकिंग की 2012 में 27 हजार405 और 2011 में 21 हजार 669 घटनाएं हुई। अश्लील सामग्री को परोसना, अनधिकृत सामग्री का प्रसारण, क्रेडिट कार्ड व बैंकिंग फ्राड पूरी दुनिया में आम हैं। गृह मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक पिछले दो-तीन साल के दौरान साइबर अपराधों में सालाना 40  प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई है। अपराधों की आभासी दुनिया होने के कारण मूल स्रोत का पता लगाना ही बहुत मुश्किल काम है।नेशनल साइबर रिकार्ड्स ब्यूरो के पास साइबर अपराधों के उपलब्ध डाटा के अनुसार वर्ष 2011,वर्ष 2012 और वर्ष 2013 में क्रमश: 1791, 2876, 4356 मामले सूचना कानून के तहत दर्ज हुए जबकि इन वर्षो में भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत 422,601,1337  मामले दर्ज किए गए।ऐसे में ये साफ है कि ठोस कदम उठाए बिना बढ़ते साइबर अपराधों को रोक पाना बहुत मुश्किल होगा।

–फारूक आफरीदी