शनिवार, 10 जनवरी 2015

बढ़ते साइबर अपराधों से सख्ती से निपटना होगा



संपादकीय
बढ़ते साइबर अपराधों से सख्ती से निपटना होगा
       भारत में बढ़ते साइबर अपराध समाज और सरकार के लिए जिस तेजी से बढ़ रहे हैं,उन्हें देखते हुए हमें सख्ती से निपटना होगा और हमें अपनी टेक्नोलोजी को आधुनिक और नवीनतम प्रणालियों के अनुरूप विकसित करना होगा अन्यथा इसके गंभीर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना होगा।हमें गंभीरता से सोचना होगा कि गंदी मानसिकता रखने वाले घोटालेबाजों ने साइबर तकनीक से लैस प्रशासनिक व्यवस्था का दुरुपयोग करने के तरीके भी खोज निकाले हैं।परेशानी और चिंता की सबसे बड़ी बात यह है कि अगर कोई हैकर नगरीय निकाय की व्यवस्था का अतिक्रमण कर विश्वसनीय ढंग से फर्जी पहचान स्थापित कर सकता है तो वह एक पासपोर्ट, पर्मानेंट अकाउंट नंबर (पैन कार्ड) भी हासिल कर सकता है। अगर वह जमीन की रजिस्ट्री के कार्यालय के कंप्यूटरों तक पहुंच बना ले तो वह जमीन-जायदाद के रिकॉर्ड के साथ भी छेड़छाड़ कर सकता है।सरकार हर स्तर पर सूचना प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल में इजाफा कर रही है। स्मार्ट सिस्टम आ जाने से प्रशासनिक व्यवस्था में बड़े पैमाने पर सुधार होने के साथ काम की गति में तेजी भी आ रही है। इतना ही नहीं इससे भ्रष्टाचार और शोषण की आशंका भी कम होती है। देश के विभिन्न संयंत्रों, राज्यों, क्षेत्रों के बीच बिजली की मांग और आपूर्ति का संतुलन साइबर सुविधा के अध्यम से ही रखा जाता है और वोल्टेज आदि की पूरी निगरानी रखी जाती है। इस काम को कंप्यूटर के जरिये अंजाम देना होता है क्योंकि यह इंसान के वश की बात नहीं है। क्षेत्रीय पॉवर ग्रिड्स एक दूसरे से जुड़े होते हैं।लेकिन एक कंप्यूटर मैलवेयर जैसा कोई प्रोग्राम पॉवर ग्रिड को ठप कर सकता है, ठीक उसी तरह जैसे उसने ईरान के परमाणु संयंत्रों को किया। हवाई अड्डे, रेलवे और बंदरगाह सभी ऐसे ही नेटवर्क काफी संवेदनशील हैं। नागरिकों को सुविधाएं प्रदान करने वाली प्रणालियां मसलन आयकर रिटर्न, टैक्स रिफंड और पासपोर्ट एप्लीकेशन या फिर लोगों से प्रत्यक्ष रूप से असंबद्ध व्यवस्थाएं मसलन, नैशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो, भारतीय रिजर्व बैंक, वित्त मंत्रालय और सड़क, जहाजरानी, रक्षा मंत्रालय आदि भी काफी संवेदनशील हैं। इन सभी के पास ऐसी सूचनाएं होती हैं जिनका इस्तेमाल प्रतिस्पर्धात्मक लाभ के लिए या फिर राष्ट्रीय सुरक्षा को भंग करने के लिए किया जा सकता है। ऐसे में जरूरी है कि न केवल इनकी सुरक्षा की जा सके बल्कि किसी आपदा से तत्काल निपटा जा सके। ऐसे अनेक उदाहरण मौजूद हैं जिनमें विभिन्न सरकारी वेबसाइटों को हैक कर उनके साथ छेड़छाड़ की गई। लेकिन इस खतरे से बचने के लिए जरूरी कदम अब तक नहीं उठाए गए हैं।
        देश में खुफिया एजेंसियां इंटरनेट पर सूचनाओं के प्रवाह पर नजर रखती हैं लेकिन इसके लिए कुछ और अहम कदम उठाए जाने की जरूरत है। यद्यपि गृह मंत्रालय ने देश में साइबर अपराध पर नियंत्रण के लिए एक समिति बनाई है जो निजी और सार्वजनिक क्षेत्र, एनजीओ और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ संभावित साझेदारी के लिए सुझाव देने के अलावा साइबर अपराध से जुड़े सभी पहलुओं पर सिफारिशें देगी। बेंगलूरु के शोध संगठन सेंटर फॉर इंटरनेट ऐंड सोसाइटी के कार्यकारी निदेशक सुनील अब्राहम के मुताबिक यह एक ऐसा दौर है जब व्यापक पैमाने पर निगरानी के बजाए लक्षित निरीक्षण जरूरी हो गया है। इसके लिए कुछ खास अकाउंट या प्रोफाइल की नियमित निगरानी जरूरी है। आए दिन बढ़ते साइबर अपराधों के कारण सवाल उठाए जा रहे हैं कि आखिर भारत का अपना सुरक्षा तंत्र राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े इन खतरों की पहचान क्यों नहीं कर पाता है? ज्यादातर इनटरनेट कंपनियों का मुख्यालय भारत से बाहर है और इन नेटवर्कों से सूचनाएं हासिल करने में भारत को दिक्कत महसूस होती है। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि साइबर आतंकवाद के बढ़ते खतरे की वजह से गूगल, ट्विटर और फेसबुक जैसी कंपनियां और सरकारी कंपनियां पहले के मुकाबले ज्यादा सहयोग कर रही हैं। इस सहयोग को प्रभावी बनाकर पर्याप्त सफलता हासिल की जा सकती है। पूरी दुनिया में लगभग 100 लोग ही हैं जो पूरे विश्व के साइबर अपराधों के लिए ज़िम्मेदार हैं।यूरोपीय संघ के यूरोपोल्स साइबरक्राइम सेंटर के प्रमुख ट्रोएल्स ओएर्टिंग के अनुसार हम बमुश्किल ही उन्हें जानते हैं।अगर हम इन लोगों को बाहर कर देते हैं तो बाक़ी अपने आप ढह जाएंगे। साइबर अपराधों से जूझना बहुत कठिन काम है और ऐसे लोगों की संख्या बढ़ने ही वाली है।हम उनका सामना कर सकते हैं लेकिन अपराधियों के पास ज़्यादा संसाधन हैं और वे लालच और मुनाफ़े के लिए काम कर रहे हैं। हम जितनी रफ़्तार से उन्हें पकड़ रहे हैं वे उससे ज़्यादा तेज़ी से मालवेयर (कम्प्यूटर वायरस) बना रहे हैं। साइबर अपराध का सामना करने में सबसे बड़ी मुश्किल ऐसे अपराधियों का किसी देश और सीमा के परे होना है। मुश्किल यह भी है कि अपराधी हमारे देश में आते नहीं है।वे बहुत दूर बैठकर अपराध करते हैं और सामान्य उपायों से हम उन्हें नहीं पकड़ सकते।साइबर अपराध से जुड़े ज़्यादातर प्रमुख अपराधी रूसी भाषा बोलने वाले क्षेत्रों के हैं। साइबर अपराधी मालवेयर को ऑनलाइन फोरम में बेच रहे हैं।
       आम लोगों को अपनी निजी एवं संवेदनशील जानकारियों की सुरक्षा के बारे में सोचना होगासाइबर अपराधी थोड़ी सी जानकारी पाकर लोगों के गूगल, फ़ेसबुक या आई फ़ोन अकाउंट में बदलाव कर सकते हैं। इंटरनेट प्रयोग करने वालों की बढ़ती संख्या ने उनके काम को थोड़ा और मुश्किल बना दिया है। गौरतलब है कि जनवरी 2013 में राजस्थान में हनीमून मनाने आए दंपति की अश्लील फिल्म बनाकर पोर्न वेबसाइटों पर डालने के मामले में नोएडा साइबर अपराध शाखा ने राजस्थान के होटल के मालिक और ग्रेटर नोएडा में रहने वाले डोमेन नेम के रजिस्ट्रार को गिरफ्तार किया। गिरफ्तार दोनों युवकों ने खुलासा किया कि उनके साथ मथुरा, राजस्थान, गोवा, हरियाणा, महाराष्ट्र, पंजाब और उत्तराखंड के कई होटल मालिक और मैनेजर इस धंधे में जुड़े हैं।पुलिस ने इनकी सूचना के आधार पर राजस्थान के दौसा जिले के मेंहदीपुर बालाजी में स्थित एक होटल के मालिक को गिरफ्तार कर लिया जहां पर नोएडा के दंपती का हनीमून वीडियो बना था।यह रैकेट देश ही नहीं फ्रांस, जर्मनी, इंग्लैंड और अमेरिका तक फैला है।पुलिस के अनुसार गिरफ्तार दोनों युवकों के नाम से छह पोर्न वेबसाइटें पंजीकृत हैं। ये लोग अश्लील एमएमएस और वीडियो सीडी भी मार्केट में बेचते हैं।
       र्ष 2008  में हुए 26/11मुंबई आतंकी हमले से जुड़ी टीम ने उन ज्यादातर सवालों के जवाब पा लिए जिन पर देश और दुनिया के लोगों की निगाहें थीं लेकिन वास्तव में वर्ष 2009  में अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफबीआई ही इस आतंकी हमले के सूत्रधार तक पहुंचने में कामयाब हुई। उन्होंने इस आतंकी हमले की साजिश करने वाले शख्स डेविड हेडली तक पहुंचने में कामयाबी पाई जो इस मामले का सबसे अहम सरगना था। पांच साल के बाद भारत के सामने लगभग ऐसी ही स्थिति पैदा हुई जब बेंगलूरु के मेंहदी मसरुर बिस्वास को कथित तौर पर आतंकवादी संगठन आईएसआईएस समर्थित ट्विटर अकाउंट को संचालित करते हुए पाया गया।देश में पिछले दो साल के दौरान साइबर अपराधों में 40 फीसदी की सालाना वृद्धि हुई है। इनमें वेबसाइट्स की हैकिंग इन साइट्स पर अश्लील सामग्री परोसना, क्रेडिट कार्ड व बैंकिंग धोखाधड़ी के मामले शामिल है। इस वृद्धि से चिंतित केंद्र सरकार ने इससे निपटने की प्रभावी रणनीति तैयार करने के लिए विशेषज्ञ समूह का गठन किया ।गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2013  में साइबर अपराध के 71 हजार 780 मामले सामने आए थे जबकि 2012 में इनकी संख्या 22 हजार थी। लेकिन इस साल जून तक  साइबर अपराध की 62 हजार 189 घटनाएं सामने आ चुकी थीं। 2013 में दुनियाभर में फैले विभिन्न हैकर समूहों द्वारा भारत की 28 हजार 481 वेबसाइट्स हैक की गई थीं। हैकिंग की 2012 में 27 हजार405 और 2011 में 21 हजार 669 घटनाएं हुई। अश्लील सामग्री को परोसना, अनधिकृत सामग्री का प्रसारण, क्रेडिट कार्ड व बैंकिंग फ्राड पूरी दुनिया में आम हैं। गृह मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक पिछले दो-तीन साल के दौरान साइबर अपराधों में सालाना 40  प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई है। अपराधों की आभासी दुनिया होने के कारण मूल स्रोत का पता लगाना ही बहुत मुश्किल काम है।नेशनल साइबर रिकार्ड्स ब्यूरो के पास साइबर अपराधों के उपलब्ध डाटा के अनुसार वर्ष 2011,वर्ष 2012 और वर्ष 2013 में क्रमश: 1791, 2876, 4356 मामले सूचना कानून के तहत दर्ज हुए जबकि इन वर्षो में भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत 422,601,1337  मामले दर्ज किए गए।ऐसे में ये साफ है कि ठोस कदम उठाए बिना बढ़ते साइबर अपराधों को रोक पाना बहुत मुश्किल होगा।

–फारूक आफरीदी
 

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