शनिवार, 10 जनवरी 2015

हमें प्रवासी भारतवंशियों का विश्वास जीतना होगा



         
संपादकीय

हमें प्रवासी भारतवंशियों का विश्वास जीतना होगा

गुजरात के गांधीनगर में 13वें प्रवासी भारतीय दिवस में भारतवंशियों से देश के विकास में और ज्यादा जुडने की अपील करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भले यह कहा हो कि नयी मजबूती से भारत का 'उदय' होने के साथ उनके लिए देश में बहुत सारी संभावनाएं इंतजार कर रही हैं लेकिन इसके लिए उन्हें भारत को तैयार भी करना होगा।हमें भारतवंशियों का सहयोग लेना है तो उसके अनुरूप आचरण भी करना होगा, जो केवल बातों से संभव नहीं होगा। मोदी ने यह भी कहा कि पूरी दुनिया बड़ी उम्मीदों के साथ भारत की तरफ देख रही है और उसमें विश्वास एवं क्षमता की जरुरत है।यही विश्वास और क्षमता जगाने की ही तो  जरूरत है।यह किसी से छिपा नहीं कि अभी प्रवासी बंधु भारत के साथ अपना हाथ बढ़ाने में हिचकिचाते हैं और यह एक कटु सच्चाई है।वजह साफ है,क्योंकि हम जो लच्छेदार बातें प्रवासियों के बीच करते हैं उसमें दम नहीं होता क्योंकि व्यवहार के स्तर पर हम खरे नहीं उतरते।हम अपनी कार्यप्रणाली को जब तक लचीला, पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त नहीं बनाते तब तक किसी प्रवासी से कोई अनुकूल आशा नहीं कर सकते। महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने के 100 साल पूरे होने के बीच इस साल प्रवासी दिवस मनाया जा रहा है।
भारतवंशियों को देश की 'बडी पूंजी' बताते हुए प्रधानमंत्री ने 200 से अधिक देशों में रह रहे इन ढाई करोड लोगों के इस समुदाय से देश को बदलने में मदद करने की अपील की हैभारतवंशी सचमुच बड़ी पूंजी तभी साबित होंगे जब हम उनका विश्वास हासिल कर पाएंगे।  मात्र यह कहने से काम नहीं चलेगा कि भारतीय मूल के लोग हमारी पूंजी और ताकत हैं। प्रधानमंत्री ने दुनिया भर में देश के सम्मान के निर्माण की बात भी कही है। यह सम्मान वास्तविक रूप में स्थापित करने के ठोस कदमों की आवश्यकता है। देश में शांतिपूर्ण और सदभावपूर्ण वातावरण को बहाल करने की भी महती आवश्यकता है।प्रधानमंत्री का यह कहना भी एक सच्चाई है कि भारत को बदलने में सरकार केवल 'पाउंड स्टर्लिंग और डॉलर' में रुचि नहीं रखती, लेकिन भारतवंशियों के दिमाग में तो यही है कि हमारा देश उनसे केवल पूंजी निवेश की ही आशा रखता है जबकि उन्होंने विदेशों में अपने उद्यम और पुरुषार्थ के बल पर धन और यश अर्जित किया है। भारत उनके साथ भावनात्मक ब्लेकमेल करके सहयोग लेना चाहता है। ऐसे में उनके दिमागों को साफ करना होगा। ऐसे प्रवासी सम्मेलन पहले भी हुए और सहयोग की अपीलें भी हुई, लेकिन नतीजे ढाक के तीन पात ही रहे। हमें यह मानकर चलना चाहिए कि प्रवासी बंधु तभी आएंगे जब उन्हे यहां पूंजी निवेश में मुनाफा दिखाई देगा।उनको जब महसूस होगा कि सरकारी मशीनरी का रवैया उनके साथ परेशानी से भरा, उलझाऊ और उनका समय बर्बाद करने वाला नहीं है तो वे जरूर आएंगे। उन्हें भारत के साथ भावनात्मक दृष्टि से भी जोड़े रखना हमारा दायित्व बनता है। प्राकृतिक आपदाओं के समय उनका मदद करना एक अलग बात है। ऐसी सहायता तो पीड़ित मानवता की सेवा समझकर कोई भी कर देता है, इसमें भारतीय प्रवासी होना जरूरी भी नहीं।             
केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश के माध्यम से पीआईओ और ओसीआई कार्ड को मिलाने और कई देशों के लिए आगमन पर वीजा की सुविधाएं उपलब्ध कराने के संदर्भ में प्रवासी भारतीयों से किये गये वादों को पूरा करने की बात भी कही लेकिन अभी भी इसमें जो पैंच फंसा हुआ है वह दूर होना चाहिए। नौकरशाही की अड़ंगेबाजी दूर होनी चाहिए।इस सम्मेलन में सम्मिलित करीब 4000 भारतवंशियों को मोदी से बहुत उम्मीद है।जाहिर है इनमें से कुछ व्यापार विस्तार की आशाएँ लेकर आए हैं तो कुछ लोगों का मकसद इस सम्मेलन के बहाने भारत पर्यटन है,क्योंकि इन दिनों विदेशों में घूमने-फिरने के लिए छुट्टियाँ रहती हैं। यह सही है एक समय था जब ये प्रवासी अवसरों की तलाश में अपने प्रिय देश को छोडकर दुनिया के विभिन्न हिस्सों में गए थे।अब समय के तेजी से बदलने और भारत के नयी ताकत के साथ उभरने के साथ बहुत सारी संभावनाएं बढ़ी हैं।इसके विपरीत ग्लोबलाईजेशन के साथ सभी देश बाहरी प्रवासियों से अपने यहां पूंजी निवेश के लिए सभी संभव जतन कर रहे हैं और रियायतों एवं सुविधाओं को लेकर भारी प्रतिस्पर्धा है। ऐसे में पूंजीनिवेश वहीं होगा जो सर्वाधिक सुरक्षित होगा।    
इस सम्मेलन को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से जोड़ने का प्रयास सराहनीय है।इस बहाने हमारे प्रवासी बंधु गांधीजी से कुछ तो परिचित होंगे। यहां यह कहना प्रासंगिक होगा कि आजादी के बाद जन्मी प्रवासी बंधुओं और उनकी युवा पीढ़ी को गांधीजी के जीवन दर्शन, उनके त्याग और अहिंसा के सिद्धान्त से देश को मिली खुली सांस के महत्व को समझाने की सबसे ज्यादा जरूरत है। केवल स्वछता ही गांधी का एकमात्र संदेश नहीं है। गांधीजी का पूरा जीवन ही अपने आप में एक संदेश है। यह बिलकुल सही है कि मानव विकास और दुनिया के सामने मौजूद चुनौतियों के हल के लिए उनका दर्शन और शिक्षाएं आज भी दुनिया को प्रेरित कर रही हैं।इसी को स्वीकार करते हुए यूपीए सरकार के प्रयासों के फलस्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ ने उनके जन्मदिवस को अहिंसा दिवस के रूप में घोषित किया।इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि महात्मा गांधी के दर्शन से बेहतर कुछ नहीं है। मोदी की भारतवंशियों से स्वच्छ गंगा मिशन में शामिल होने की अपील इसलिए महत्वपूर्ण माना जा सकता है कि यह अभियान धार्मिक होने के साथ पर्यावरण के लिहाज से भी उपयोगी है।         
इसमें भी कोई दो राय नहीं कि  विश्व के लोग हर भारतीय को सम्मान की नजर से देखते हैं। उनका अमीर होना इसका कारण नहीं है, बल्कि भारत के गौरवशाली इतिहास, परंपरा और हमारे जीवन मूल्यों की वजह से उनका आदर होता है। ऐसे में हर प्रवासी भारतीय का  दायित्व है कि वह  देश की तरक्की में अपना योगदान दे।यह भी सही है कि आजादी के बाद अधिकांश समय तक केन्द्र में कांग्रेस का शासन रहा जिस पार्टी का सवा सौ वर्षों से ज्यादा का समृद्ध इतिहास है और जिसके महान नेताओं की दुनिया में धाक रही है और यह बार पहली बार है कि भाजपा ने नरेन्द्र मोदी के अकेले बलबूते पर पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता संभाली है। इस सरकार की आर्थिक नीति, विदेश नीति सहित विभिन्न मोर्चों पर अभी परख होनी है। यह समय मोदी के सामने अग्निपरीक्षा का है जिस पर उन्हें खरा उतरकर दिखाना है। उनके नेतृत्व को लेकर दुनिया का हर देश भारत की ओर देख रहा है। इसके लिए उनका अपने छह महीने के कार्यकाल में 50 से अधिक विश्व नेताओं से मिलना ही सफलता का पैमाना नहीं है। उन्हें सभी देशों का विश्वास अपनी कार्य शैली और नतीजों से जीतना होगा। गांधीजी ने हर व्यक्ति के मन में स्वतंत्रता की भावना जागृत की थी। उन्होंने इसे एक जनआंदोलन बनायाविविध धर्मों, समुदायों, भाषाओं और संस्कृतियों के इस देश में सदभाव स्नेह और सभी के प्रति सम्मान की यह भावना आज भी उतनी ही महत्व रखती है और इसे बरकरार रखना होगा।इसके लिए व्यापक दृष्टि का परिचय देना होगा जो प्रधानमंत्री के लिए उनके ही अपने पार्टी नेताओं के कारण चुनौती बना हुआ है। 
-फारूक आफरीदी

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