संपादकीय
उच्च शिक्षा में चल रहे गोरखधंधे पर लगानी होगी लगाम
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में देश भर में आजकल
जो गोरखधंधा चल रहा है उससे जहां युवाओं के सपने चूर-चूर हो रहे हैं वहीं उनका
सुनहरा भविष्य भी बर्बाद हो रहा है।अभिभावक छले जा रहे हैं। पैसे के बल पर
डिग्रियाँ लेने और देने के इस खेल ने उच्च शिक्षा प्रणाली पर भी कई प्रश्न चिन्ह
लगा दिये हैं। जबसे निजीकरण का दौर शुरू हुआ है, तब से उच्च शिक्षा के क्षेत्र में मुनाफे का व्यापार करने वाली बेशुमार
दुकानें खुल गयी हैं।इससे शिक्षा की गुणवत्ता हाशिये पर चली गयी है। शिक्षण
संस्थाओं के नाम पर इनके आका मोटी फ़ीसें वसूलने वाले केन्द्र बन गए हैं और शिक्षा की
गुणवत्ता की बातें बेमानी हो गयी हैं। शिक्षा जैसे
पवित्र मंदिरों में लूट का व्यापार ना केवल शर्मनाक बल्कि इसकी पवित्रता पर भी एक
कलंक साबित हो रहा है। हाल ही एसओजी ने प्रदेश के एक बड़े शिक्षण संस्थान के शिक्षा
महाघोटालों का खुलासा कियाहै जिसमें शिक्षण संस्थान के प्रमुख द्वारा दलालों के
जरिये विद्यार्थी महज पंद्रह दिनों के
भीतर ग्रेजुएशन पूरी कर लेते हैं। इसके लिए महज पंद्रह से पच्चीस
हजार रुपए की राशि में इस तरह की डिग्री
हासिल करना संभव है। गिरफ्त में आए आरोपियों से पूछताछ और एसओजी की प्रारंभिक जांच
में यह तथ्य सामने आया है कि करीब आठ हजार
स्नातक, स्नातकोत्तर और
विभिन्न कोर्सेज की फर्जी डिग्रियां बनाई गयी। कहा जा रहा है कि फर्जी डिग्री के
बदले जो पैसा आता था, वह जिस खाते में जमा होता था, वह निजी यूनिवर्सिटी के मालिक ही हैंडल करते थे। एसओजी ने उस बैंक अकाउंट
का रिकॉर्ड भी जब्त कर लिया है उसमें लाखों रुपए का ट्रांजेक्शन सामने आया है।
राज्य के उच्च शिक्षामंत्री
ने जोधपुर की एक निजी क्षेत्र की यूनिवर्सिटी के प्रमुख द्वारा फर्जी डिग्री
बांटने के मामले के पर्दाफाश के बाद तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया है। उच्च
शिक्षा सचिव की अध्यक्षता में गठित इस कमेटी में कॉलेज आयुक्त और संयुक्त निदेशक
को सदस्य बनाया गया है। कमेटी पंद्रह दिन में अपनी रिपोर्ट देगी।फर्जी शिक्षण
संस्थाओं के मालिक अपने लंबे राजनीतिक रसूख और समाज के प्रतिष्ठित लोगों से अच्छे
सम्बन्धों के बल पर ही ऐसा कर पाते हैं और सेलेब्रेटीज़ के नामों को अपने पक्ष में भुनाते
हैं। अमिताभ बच्चन और आशा भोंसले जैसी शख्सियतों को मानद डी-लिट की उपाधि प्रदान
कर अपने पक्ष में कर लेते हैं। इस प्रकार के मामले कोई एक निजी यूनिवर्सिटी तक ही
सीमित नहीं है बल्कि इनकी तादाद कई गुना है जो सरकार और देश की आंखों में निरंतर
धूल झोंक रहे हैं। ऐसे लोग धन बटोरने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। फर्जी
डिग्री बांटने के गोरखधंधे में ये मास्टरमाइंड होते हैं। बेशुमार दौलत कमाना ही
इनका एक मात्र मकसद होता है और नैतिकता का इनके लिए कोई मूल्य नहीं है। ये अपना
जीवन विलासितापूर्ण जीते हैं । इनके पास सामान्य ज्ञान रखने वाले शातिर दिमाग के एजेंटों
की कमी नहीं जो हाथोंहाथ मालमाल होने की महत्वाकांक्षा पाले हुए होते हैं। ये हर
महीने मोटी रकम पाते हैं।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग
ने कुछ समय पूर्व देश के 11 विश्वविद्यालयों को फर्जी घोषित किया था लेकिन वर्तमान
स्थिति में जांच कराई जाए तो आंकड़ा तीन अंकों
को पार कर जाएगा। आयोग ने देश के बिहार, दिल्ली, कर्नाटक, केरल, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडू,पश्चिम बंगाल, उत्तर
प्रदेश में फर्जी विश्वविद्यालयों की सूची जारी की थी। इनमें सर्वाधिक उत्तरप्रदेश
में है। किसी हद तक आयोग भी ऐसे विश्वविद्यालयों को
मान्यता देने के मामले में दोषी है। ऐसे लोगों के चरित्र, कामकाज आदि की पूर्व में पुलिस और प्रशासनिक जांच को भी खंगाला जाना
चाहिए। गौर तलब है कि विश्वविद्यालय
अनुदान आयोग 1953 में अस्तित्व में आया था। संसद के एक अधिनियम द्वारा इसे एक वैधानिक
निकाय बनाया गया था। यह विश्वविद्यालय शिक्षा हेतु समन्वय, मानदंडों
के निर्धारण और अनुरक्षण करने वाली राष्ट्रीय संस्था है । यह केंद्र एवं राज्य
सरकारों तथा उच्च शिक्षा प्रदान करने वाली संस्थाओं के बीच समन्वयक संस्था के रूप
में कार्य करता हैं।यूजीसी अधिनियम में यह प्रावधान है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग
शिक्षा के संवर्द्धन और समन्वय हेतु तथा शिक्षण, परीक्षा एवं
शोधन के क्षेत्र में सम्बंधित विश्वविद्यालयों के साथ विचार विमर्श करके जो कार्यवाही
उचित समझे, कर सकता है। शिक्षण और अनुसंधान के साथ प्रसार को
आयोग द्वारा शिक्षा के तीसरे आयाम के रूप में जोड़ा गया था। अपने कार्य को चलाने
के उद्देश्य से आयोग अपने कोष से, महाविद्यालयों एवं
विश्वविद्यालयों को रखरखाव एवं विकास हेतु अनुदान आवंटन एवं वितरण करने, विश्वविद्यालय शिक्षा उन्नयन हेतु आवश्यक उपायों के लिए केंद्र सरकार,
राज्य सरकारों तथा उच्च शिक्षा के संस्थानों को परामर्श देने और
अधिनियम के अनरूप नियम एवं प्रक्रिया निर्धारण करने का कार्य कर सकता है। आयोग में
अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तथा भारत सरकार द्वारा नियुक्त 10
अन्य सदस्य होते हैं। सचिव इसके कार्यकारी अध्यक्ष होते हैं।देश में
आयोग के क्षेत्रीय कार्यालय हैदराबाद, पुणे, भोपाल, कोलकाता, गुवाहाटी तथा
बंगलूरू में हैं। अभी तक गाज़ियाबाद में स्थित उत्तर क्षेत्रीय कार्यालय अब यूजीसी
मुखालय से उत्तर क्षेत्रीय महाविद्यालय ब्यूरो (एनआरसीबी) के
रूप में कार्य कर रहा है।विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने कुछ नए कदम उठाये हैं ।
जिनमे, उद्यमशीलता और ज्ञान आधारित उद्यमों को बढ़ावा देना,
बौधिक संपदा अधिकारों का संरक्षण, भारतीय उच्च
शिक्षा का संवर्द्धन, विदेशों में शिक्षा प्रशासकों के लिए प्रशिक्षण
और विकास तथा व्यापक कंप्यूटरीकरण संबंधी उपाय शामिल हैं ।
ऐसे विश्वविद्यालय, जो जाली घोषित किए जाते हैं, उनके
फर्जी घोषित होने का पैमाना क्या रहता होगा, यह तो अलग बात
है लेकिन इतना तो तय है कि अनैतिक रूप से धन कमाना एक बड़ा कारण है। विश्वविद्यालय
अनुदान आयोग इन विश्वविद्यालयों की डिग्री को मान्यता नहीं देता। आयोग उन
विश्वविद्यालयों से पूरी तरह अपरिचित है जो भ्रष्ट तरीकों को अपनाते हुए चल रहे
हैं क्योंकि आयोग के पास ऐसा कोई मैकेनिज़्म नहीं है कि तत्काल कोई कदम उठा
सके।जांच की प्रक्रियाएं लंबी चलती हैं जब तक कई विद्यार्थियों का भविष्य अंधकार
में जा चुका होता है। जब तक कोई शिकायत प्राप्त नहीं होती,
सब कुछ ठीक चलता रहता है और शिकायतों की पूरी तरह जांच होकर नतीजे नहीं आ जाते तब
तक छात्र-छात्राओं के साथ छल का व्यापार चलता रहता है। ऐसे में सख्त कानूनी
प्रावधानों का होना नितांत आवश्यक है और सजा के प्रावधान भी कड़े बनाने होंगे। सभी
विश्वविद्यालयों का निरीक्षण और नियमित जांच होती रहे कि वे सही दिशा में काम कर
रहे हैं कि नहीं। विश्वविद्यालयों पर कड़ा अंकुश बना रहना जरूरी है।विश्वविद्यालयों
का ध्यान इस बात पर केन्द्रित रहे कि शिक्षा की गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं हो।
जाली विश्वविद्यालयों का जाल ना फैले, इस दिशा में राज्य
प्रशासन को निपटना होगा।
-फारूक आफरीदी
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