संपादकीय
पत्रकारिता
विश्वविद्यालय जारी रखा जाना चाहिए
प्रदेश की राजधानी में राज्य सरकार के सहयोग से संचालित
किये जा रहे हरिदेव जोशी पत्रकारिता एवं जन संचार विश्वविद्यालय को बंद करने की
ख़बरें आ रहीं हैं, जो पत्रकारिता जगत के लिए चिंता का विषय है। प्रदेश में नई
भाजपा सरकार के गठन के बाद पिछली कांग्रेस सरकार के अंतिम छह माह में लिए गए फैसलों की समीक्षा के लिए
गठित कैबिनेट उप
समिति ने इस विश्वविद्याल़य को बंद करने की सिफारिश की है।समझ नहीं आता कि इसमें केबीनेट उपसमिति को क्या खोट नजर
आया।इस विश्वविद्यालय से किसी का नुकसान भी
नहीं हो रहा और न ही किसी व्यक्ति या समुदाय को इसके जरिये अनुचित लाभ पहुंचाने की
बात नजर आती है। इस विश्वविद्यालय के बने रहने से
जहां प्रदेश के हजारों ऐसे विद्यार्थियों को लाभ मिलेगा जो पत्रकारिता और जनसंचार
को अपने जीवन में रोजगार का आधार बनाना चाहते हैं।
इसमें भला किसी का क्या नुकसान हो सकता है।अगर सरकार के लिए ये सचमुच ही
फिजूलखर्ची वाला संस्थान होता तो इसी प्रकृति के भारत सरकार के अधीन संचालित
भारतीय जन संचार संस्थान को प्रधानमंत्रीजी और अधिक विकसित करने का फैसला क्यों
लेते और मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ जैसे भाजपा शासित राज्यों में ऐसे विश्वविद्यालय
क्यों संचालित किये जा रहे हैं। सरकार अपने वित्तीय घाटे को कम करने या मितव्ययता
का तर्क देती है तो उसके पास ऐसे अनेक राजकीय उपक्रम हैं जो बड़े घाटे में चल रहे
हैं,उन्हें बंद किया जाना चाहिए। इसके साथ ही सरकार को अन्य फिजूलखर्ची वाले मदों
पर कारगर लगाम लगा सकती है।
आज देश में शिक्षा और खास तौर से उच्च
शिक्षा, तकनीकी शिक्षा तथा विषय विशेष की शिक्षा देने का वातावरण बना हुआ है ताकि
हमारे प्रतिभावान युवा अपने विषयों की शिक्षा प्राप्त कर उसके आधार पर दुनिया में
कहीं भी रहकर अपने कर्म क्षेत्र में उत्कृष्टता के माध्यम से अपनी धाक जमा सकें।
ऐसे में पत्रकारिता विषय के ज्ञानार्जन कि दिशा में प्रदेश में हुई इस अनूठी पहल
को बढ़ावा देने की बजाय बंद कर देना कोई समझदारी भरा कदम हरगिज नहीं हो सकता।मान
लिया जाये कि यह कदम राजनीतिक दृष्टि से उठाया जा रहा है तो भी इसमें किसी पार्टी
को राजनीतिक माईलेज नहीं मिलने वाला है। अलबत्ता प्रदेश का वर्तमान नेतृत्व इस
विश्वविद्यालय को सक्षम बनाता है तो ये श्रेय जरूर उसे मिलेगा।इसके साथ ही
पत्रकारिता शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थियों का भविष्य भी संवरेगा।
आज के सूचना और प्रौद्योगिकी के युग में
पत्रकारिता के विविध आयाम सामने आ रहे हैं और लोकतंत्र को सबल बनाने में इसके
योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता। मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहलाता
है,जिसे और मजबूती देने की दरकार है।देश में यह क्षेत्र तेजी से पनप रहा है और
लोकतंत्र के प्रहरी के रूप में नई पीढ़ी इसे एक चुनौती के रूप में अपना रही है। ऐसे
में इस संस्थान को बंद कर देने का निर्णय चौंकाता है और पुनर्विचार की अपेक्षा
करता है। आजादी के बाद प्रदेश में हुई इस अभिनव शुरुआत का स्वागत किया जाना चाहिए।
यह विश्वविद्यालय एक अर्थ में सरकार के सूचना और जनसंपर्क विभाग की कार्य प्रणाली
और बदलते परिवेश में उसकी बढती उपयोगिता के मद्देनजर भी अधिक प्रभावी एवं
शक्तिशाली बनाने में भी सहायक सिद्ध हो सकता है। जनसंपर्क विभाग ने प्रिंट,
इलेक्ट्रोनिक और सोशियल मीडिया प्रचार के
साथ अब विज्ञापन के सारे काम भी अपनी जनसंपर्क टीम को सौंप दिए हैं। जनता को
आकर्षित करने वाले विज्ञापन बनाने का काम अब तक विज्ञापन एजेंसियां अपनी अनुभवी
क्रिएटिव स्क्रिप्ट राईटर्स टीम के जरिये अंजाम दे रही थी। सरकार के विज्ञापन को
नई सोच के साथ थीम आधारित विज्ञापन भी बनाने होंगे। प्रिंट,इलेक्ट्रोनिक और सोशियल
मीडिया में सरकार की प्रभावी छवि के लिए
पीआर टीम में नई सोच विकसित करने में इस विश्वविद्यालय की अनुभवी फैकल्टी का
महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। ऐसे में होना तो यह चाहिए कि यह विश्वविद्यालय आने
वाले समय में पत्रकारिता और जन संचार के क्षेत्र में एक शानदार मिसाल बने और
पत्रकारिता के विद्यार्थी इसमें प्रवेश लेना अपना गौरव समझें।
यहां कहना प्रासंगिक होगा कि राष्ट्रीय और
राज्य स्तर पर ऐसी अनेक योजनायें संचालित हैं जो अपनी कार्यशैली के कारण बदनाम
हैं, लेकिन सरकार ने उन्हें बंद नहीं किया। अगर सिस्टम में कोई गड़बड़ी है तो उसमें
सुधार किया जाना चाहिए, बंद करने का तो कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता। एक बात और भी
है कि मीडिया क्षेत्र के विकास और विस्तार की भावी संभावनाओं को देखते हुए देश भर
में वर्तमान में पत्रकारिता और जनसंचार की शिक्षा के नाम पर निजी क्षेत्र में अनेक
संस्थाएं कुकुरमुत्ते की तरह खुल गयी हैं, जहां विद्यार्थियों का शैक्षणिक और
आर्थिक शोषण हो रहा है लेकिन गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध नहीं है। यह
विश्वविद्यालय पूरी संजीदगी और सीमित संसाधनों के बावजूद अपनी एक पहचान बना रहा
है, जिसे बंद करने से निजी क्षेत्र के मीडिया संस्थानों को खुली लूट की छूट मिल
जाएगी। प्रदेश के दूरदराज ग्रामीण इलाकों में भी अब पत्रकारिता तेजी से पनप रही है
और इस विश्वविद्यालय की स्थापना से उन नवोदित पत्रकारों में इस विषय की व्यवहारिक
शिक्षा प्राप्त करने की आशा बलवती हुई है। अतः इस दिशा में ठोस प्रयास हों कि इस
विश्वविद्यालय के लिए हिंदी, अंग्रेजी और अन्य भारतीय भाषाओँ के वरिष्ठ और अनुभवी
पत्रकारों का एक ऐसा सशक्त पैनल बने जो समय-समय पर इस विश्वविद्यालय की फेकल्टी के
रूप में इसे समृद्ध करे। भारत में काम कर रहे विदेशी पत्रकारों के अनुभवों को भी
यहाँ के विद्यार्थियों के बीच शेयर किया जा सकता है। कोई भी निर्णय लेने से पूर्व
इस विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद से अब तक यहां प्राध्यापकों की संख्या, अन्य
शैक्षणिक स्टाफ एवं संसाधनों के स्तर पर हुई प्रगति का मूल्यांकन भी किया जाना
चाहिए। गौरतलब है कि आज विश्वविद्यालयों की उपाधियों और वहां हो रहे शोध कार्यों
को लेकर अनेक सवाल उठाये जा रहे हैं। हमारे अधिकांश विश्वविद्यालय गुणवत्ता के
मानक स्तर पर खरे नहीं उतर रहे और ग्रेडिंग में निचले पायदान पर खड़े हैं,जो सभी के
लिए चिंता का विषय है।जब ऐसे विश्वविद्यालयों को भी बंद करने की कोई योजना नहीं है
तो गतिशील हो रहे इस पत्रकारिता विश्वविद्यालय की भ्रूण हत्या कर देना कहां की
समझदारी होगी,यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है। एक अनुभवी एवं वरिष्ठ पत्रकार के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा
दौर भी देखा गया जब पत्रकारिता में राज्य विशेष के पत्रकारों की बड़ी खेप प्रवेश कर गयी, जिसमें
राजस्थान कहीं नहीं था।आज
भी नवोदित किसी अखबार में प्रशिक्षण लेकर नहीं बल्कि नई दिल्ली के
ख्यातनाम मास मीडिया संस्थानों से ट्रेनिंग लेकर आ रहे हैं।इसके विपरीत राजस्थान के अख़बारों को कैम्पस भर्ती के
लिए वहां
जाना पड़ता है।कहने
का तात्पर्य यह है कि अब पत्रकारिता की औपचारिक शिक्षा अनिवार्य हो गई है। राजस्थान के पत्रकार विद्यार्थी अगर
नेशनल मीडिया में जायेंगे तो राजस्थान को भी अधिक कवरेज मिलेगा और राज्य की आवाज
भी सम्मान के साथ सुनी जाएगी। यह शासन के लिए भी हर दृष्टि से फायदेमंद साबित होगा।
इसे किसी राजनैतिक नजरिये से नहीं बल्कि राज्य हित में देखने की जरूरत है। हमारे प्रतिभाशाली
पत्रकार अधिक से अधिक
सामने आएंगे और राष्ट्रीय एवं आंचलिक मीडिया को नेतृत्व
प्रदान करेंगे तो जाहिर है कि इससे राष्ट्र के बौद्धिक जगत में राजस्थान का प्रभुत्व
बढेगा। आशा की जानी
चाहिए कि प्रदेश का वर्तमान नेतृत्व इस विश्वविद्यालय को लेकर ऊहापोह की स्थिति को
विराम देगा और ऐसा हरगिज नहीं होने देगा, जिससे कोई असंतोष पैदा हो। शासन अपने
फैसले पर एक बार फिर गंभीरता से विचार कर विवेकपूर्ण निर्णय लेगा।
अतिथि संपादक
फारूक आफरीदी,
वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार
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