गुरुवार, 26 मार्च 2015

नारी शक्ति के फैसलों पर अमल भी हो



राज्य में डायन प्रथा के विरुद्ध कानून बनाने और बालिका यौन शोषण को रोकने के लिए बनी योजना पर मेरा संपादकीय 25.march2015 को दैनिक राष्ट्रदूत, जयपुर सहित प्रदेश के सभी संस्करणों में प्रकाशित हुआ है.


संपादकीय
नारी शक्ति के फैसलों पर अमल भी हो
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग और महिला एवं बाल विकास विभाग ने स्त्री शक्ति के पक्ष में अनेक फैसले किये हैं लेकिन इन फैसलों पर अमल भी उसी भावना के अनुरूप होना चाहिए तभी इनकी सार्थकता है।अक्सर होता ये है कि फैसले तो बहुत हो जाते हैं, लेकिन उन पर सही रूप से अमल नहीं हो पाता और अपराधी छूट जाते हैं और निरपराधी उसकी पीड़ा भोगते रहते हैं। सरकार डायन प्रथा की रोकथाम के लिए कानून बनाने जा रही है जो स्वागत योग्य कदम है। आजादी के 67 साल गुजर जाने के बाद भी इस सामाजिक बुराई और जघन्य अपराध के विरुद्ध कानून का नहीं बन पाना शासन की घोर उदासीनता ही माना जाएगा और इसके लिए पूर्व में शासन करने वाले भी कोई कम जिम्मेदार नहीं हैं। सरकार इस कानून को जल्द से बनाये और आगामी महिला दिवस तक महिलाओं को उनका सम्मान लौटाने वायदा पूरा करे। यहाँ कहना प्रासंगिक होगा कि राजस्थान का कोई अंचल ऐसा नहीं है जहाँ महिलाएं यह अभिशाप ना झेल रही हों। हमारा समाज और शासन दोनों ही इससे अपरिचित नहीं हैं।अगर सरकार ने मसौदा तैयार कर लिया है और अगले वित्त वर्ष तक इसे लागू करना है तो इस पर अमल समय सीमा में होना ही चाहिए। इस कानून के बन जाने से समाज की सबसे कमजोर, दलित और पिछड़े वर्गों की महिलाओं को बड़ी राहत मिल सकेगी। जब तक ये कानून नहीं बन जाता तब तक प्रशासन और पुलिस को यह कड़ी हिदायत दी जानी चाहिए कि ऐसे प्रकरणों को हल्के में ना ले और दोषी लोगों को सजा दिलवाने के लिए पुख्ता प्रबंध हों।जहाँ कहीं ऐसे प्रकरण सामने आयें वहा तुरंत प्रसंज्ञान लेकर कार्यवाही की जाये। 
राज्य सरकार ने यौन शोषण और विभिन्न हिंसा से पीड़ित बालिकाओं तथा उनके परिवारों को आवश्यक परामर्श, कानूनी प्रक्रिया, सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में लाभ और मुआवजा दिलवाने के लिए ‘विजयाराजे सिंधिया बालिका संरक्षण एवं सम्मान योजना’ बनाई है जो स्वागत योग्य है लेकिन असली स्वागत तो तभी होगा जब इसका लाभ वास्तविक पीड़ित वर्ग को मिलने लगेगा।कोई भी योजना अपने आप में बुरी नहीं होती, असल में उसके क्रियान्वयन पर ही सारा दारोमदार टिका रहता है।योजना पर ईमानदारी और प्रतिबद्धता से अमल हो तो कोई दिक्कत हो ही नहीं सकती। यह काम शासन के सम्बंधित मंत्री और विभाग के आला अफसरों का है कि वे योजनाओं के अमल पर कड़ी नजर रखें और समय–समय पर उनकी मोनिटरिंग करते रहें ताकि कहीं कोई कमी, खामी, कोताही बरती जा रही हो तो उसमें तुरंत हस्तक्षेप करके उसे सुधारा जा सके। योजनाओं की सफलता तभी सुनिश्चित हो सकती है जब उनमें जनप्रतिनिधियों और जनता की सक्रिय भागीदारी हो।इस दृष्टि से जनप्रतिनिधियों को जिम्मेदारी सौंपी जाये और देखा जाये  कि वे इनमें रूचि ले रहे हैं या नहीं। इसके साथ ही सामाजिक संघठनों को भी शामिल किया जाये।सरकार के विभाग और उनके अधीन काम कर रहे संस्थान जैसे महिला आयोग को भी इसमें बराबर की भागीदारी निभानी होगी। बालिका संरक्षण एवं सम्मान योजना के तहत 18 वर्ष से कम आयु की बालिका, जिसने खुद और अपनी साथी का बाल विवाह या यौन शोषण रोका हो, राज्य सरकार उसे सम्मानित करेगी। इस फैसले से बालिकाओं को प्रोत्साहन मिलेगा और वे अन्याय और अनाचार के विरुद्ध साहसपूर्वक उठ खड़ी हो सकेंगी।यह भी योजना है कि अब छात्रावासों में बायोमेट्रिक प्रणाली से प्रवेश दिया जाकर उपस्थिति दर्ज की जाएगी।फ़िलहाल यह योजना पाली जिले में लागू है और अब इसका विस्तार किया जा रहा है। इस योजना के लिए धन की कमी बाधक नहीं बननी चाहिए और यथा समय सभी जिलों में लागू हो जाती है तो निश्चय ही अपराधों में कमी आयेगी और अवांछित व्यक्ति छात्रावासों में प्रवेश नहीं कर पाएंगे।सरकार ने हालाँकि इस योजना को चरणबद्ध रूप से लागू करने की बात कही है।
जहाँ तक वृद्धावस्था और विधवा पेंशन की बात है तो साकार ने इस बारे में भी फैसला किया है कि सामाजिक सुरक्षा पेंशनर्स के बैंक खातों की सूचना विभाग के वेबसाईट पर डाल दी है और अगले वित्त वर्ष यानी अप्रेल 2015 से पेंशन का भुगतान बैंकों के जरिये होने लगेगा।यहां विभाग को यह देखना होगा कि कोई पात्र व्यक्ति पेंशन से वंचित न रह जाये, क्योंकि लोगों के नामों के अंतर अथवा पते या उम्र को लेकर कहीं कोई त्रुटी रह जाये तो भी पेंशन से वंचित होना पड़ता है। अनेक प्रकरणों में सूचना अथवा मार्गदर्शन के अभाव या नि:शक्तजन होने की अवस्था में कई लोग वंचित रह सकते हैं। ऐसे में विभाग को सभी इलाकों में पेंशन शिविरों का आयोजन करके उन त्रुटियों को दुरुस्त करना चाहिए और साथ ही ऐसी पेंशन के नए हकदारों को भी लाभान्वित करने की आवश्यकता है। सरकार को खास तौर से विधवा महिलाओं के मामले में संवेदनशीलता का दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है, क्योंकि उनके तो जीवन का एक मात्र आधार ही ये पेंशन होती है। यह अच्छी बात है कि पेंशन के लिए ई-मित्र पर आनलाइन आवेदन लिए जायेंगे, लेकिन देखने की बात यह है कि कितने पेंशन के हक़दार लोग आनलाइन आवेदन करने में सक्षम हैं। सरकार को ऐसे पात्र व्यक्तियों को लाभ दिलाना है तो उनके आवेदन-पत्र आमंत्रित करने में उनकी हर संभव मदद करनी होगी, क्योंकि प्रदेश में साक्षरता का प्रतिशत ही जब बहुत  कम है तो कम्प्युटर साक्षरता की तो बहुत दूर की बात है।                           
सरकार द्वारा विशेष योग्यजनों के लिए रोजगार मेलों के आयोजन की बात कही गयी है। दरअसल उन्हें सम्मान के साथ रोजगार मिलना ही चाहिए। विशेष योग्यजन भी हमारे समाज के अभिन्न अंग हैं।उनके साथ सहानुभूति से ज्यादा उनके योग्य काम और संबल प्रदान करने की महती आवश्यकता है।उन्हें नि:शक्तता का उचित प्रमाण-पत्र और कृत्रिम अंग उपलब्ध करवाकर उनके जीवन को सार्थक बनाया जाना चाहिए।समाज में एकल परिवारों की बढती धारणा के कारण वृद्धजनों के सामने बड़ी समस्या पैदा हो गयी है और उपेक्षा के शिकार हो रहे हैं।ऐसे बुजुर्गों को सम्मानजनक जीवन बिताने के लिए वृद्धाश्रम बहुत महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं। सरकार ने आगामी वित्तीय वर्ष में संभाग स्तर पर सरकारी वृद्धाश्रम स्थापित करने की बात कही है, लेकिन फ़िलहाल तो सरकार के स्तर पर ऐसा कोई आश्रम नहीं है ।ऐसे में सरकार  निजी क्षेत्र के वृद्धाश्रमों को प्रोत्साहन दे तो योजना फलीभूत हो सकती है। सरकार यदि स्वयंसेवी संस्थाओं को इसके लिए नि:शुल्क भूमि उपलब्ध कराये तो काफी अच्छे वृद्धाश्रम बन सकते हैं और उपेक्षित बुजुर्ग वहां अपने जीवन के अंतिम पड़ाव को आसानी से गुजार सकते हैं। यह भी शुभ है कि बढ़ते बाल अपराधों से जुड़े बोर्ड को सरकार प्रभावी बनाना चाहती है और इसके लिए जयपुर में नया किशोर बोर्ड,जयपुर-2 और किशोर न्याय बोर्ड ग्रामीण के गठन का विचार रखती है। यह कदम भी जल्दी ही उठाना चाहिए। सरकार द्वारा जयपुर में एक और बाल कल्याण समिति भी बनाने जा रही है, लेकिन इससे अधिक आवश्यक यह है कि राज्य स्तर और जिला समितियों को अधिक सक्षम बनाया जाये तथा उन्हें अधिक अधिकार संपन्न बनाया जाये।
अतिथि संपादक
फारूक आफरीदी,
वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार
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