बुजुर्गों के हितों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय आयोग के गठन की तैयारी
केन्द्र की यूपीए सरकार बुजुर्गों
के हितों की रक्षा के लिए जल्द ही नए आयोग का गठन करने वाली है।
सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय ने वरिष्ठ नागरिकों के लिए
शक्ति सम्पन्न विशेष आयोग के गठन के संबंध में मसौदा सभी पक्षकारों के
बीच वितरित कर दिया है। अगर केन्द्र सरकार इस आयोग का गठन करती है तो
यह माना जाना चाहिए कि देश
के 10
करोड़ से अधिक बुजुर्गों को
सामाजिक सुरक्षा के साथ उनके तमाम
हितों की रक्षा भी संभव हो सकेगी। वर्ष2011
की जनगणना के मुताबिक 60
वर्ष या इससे अधिक आयु के लोगों की संख्या 10.4 करोड़
आँकी गयी जो वर्ष 2050तक 32 करोड़ तक पहुँचने की
आशा है। देश के बुजुर्गों
की इतनी बड़ी आबादी के लिए यह मुद्दा अब एक बड़ी सामाजिक
चुनौती बनकर उभर रहा है।
मंत्रालय द्वारा
प्रस्तावित नेशनल बिल फॉर सीनियर सिटीजन कमीशन के मसौदे को हाल में ही सभी पक्षकारों की टिप्पणी के लिए
वितरित कर दिया गया है। मसौदे के मुताबिक आयोग को बुजुर्गों की सुरक्षा से जुड़े
मुद्दों की जांच पड़ताल और समीक्षा करने
का अधिकार मिल जायेगा। आयोग संविधान और कानून
के आधार पर वरिष्ठ नागरिकों की
सहायता कर सकेगा। इससे बुजुर्गों को कानूनी, सामाजिक और आर्थिक अधिकार व
सहायता मिल सकेगी। दूसरी ओर वे अपने शोषण,अधिकार हनन जैसी शिकायतें आयोग में दर्ज करा सकेंगे। आयोग शिकायतों
के बारे में संज्ञान लेकर तफतीश कर
सकेगा और अपनी
सिफारिशें सरकार को सौंप सकेगा। वहीं
बुजुर्गों के
अधिकारों के हनन के मामलों का आयोग खुद संज्ञान ले सकेगा।
दूसरी ओर हेल्प एज
इंडिया के ताजा सर्वे में यह बात
सामने आई है कि हमारे बुजुर्ग धीरे-धीरे हाशिये पर खिसक रहे
हैं। घर की चारदीवारी में भी अब वे बेहद असुरक्षित
हैं। उन्हें अपने घर में भी शारीरिक-मानसिक प्रताड़ना का शिकार होना पड़ रहा है। इस रिपोर्ट में 48 फीसदी पुरुष
और 42 फीसदी महिलाओं ने यह माना है कि उन्हें
उनके अपने परिजनों द्वारा ही प्रताड़ित किया जाता है। यानी अपने
माता-पिता और दादा-दादी के साथ ऐसा व्यवहार करने वाले घर के ही सदस्य, खासतौर पर उनकी अपनी ही
संतानें हैं।
समाज शास्त्रीय अध्ययन से
मालूम होता है कि दरअसल, संयुक्त
परिवार के विघटन की प्रक्रिया तेज होने से
वृद्धजन हाशिये पर चले गए हैं। परिवार में
उन बुजुर्गों की दशा तो और भी विकट हो गई है, जो केवल कृषि के
कामों पर निर्भर रहे हैं। आज एकल परिवार एक कदम और आगे जाकर
व्यक्ति-केंद्रित सामाजिक इकाई बन रहे हैं, जिससे बुजुर्गों की उपयोगिता और भी कम हो रही है। द मेंटीनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स एंड सीनियर
सिटीजंस एक्ट- 2007 के अनुसार, वरिष्ठ
नागरिकों की देखभाल का जिम्मा परिवार के सदस्यों को दिया गया है।
इस कानून में राज्य सरकार को हर जनपद में ‘ओल्ड एज होम्स‘ खोलने का भी निर्देश है। इस कानून में राज्य सरकार को ‘मेंटीनेंस ट्राइब्यूनल्स’ गठित करने का भी निर्देश दिया गया है, जिसमें माता-पिता को अपने बच्चों से अनुरक्षण भत्ते की मांग करने के लिए मुकदमा दायर करने का अधिकार मिल सके। लेकिन सच्चाई यह है कि इस दिशा में प्रगति नगण्य है। इसमें अगर ईमानदारी से कौशिश होती तो आज हालात कुछ और ही होते। अभी भी अगर शासन ने समर्पित भावना से काम नहीं किया तो
नतीजे शून्य ही रहने वाले हैं।हमारे जनप्रतिनिधियों पर अधिक ज़िम्मेदारी है कि वे व्यापक
जनहित के मामलों में नौकरशाही को योजनाओं के किर्यान्वयन के लिए बराबर दबाव बनाए
रखें और जहां भी ढिलाई या लापरवाही सामने आए वहाँ सख्त कार्यवाही करने में कोई
लिहाज नहीं बरतें,तभी जाकर बात
बनेगी। देखा गया है कि योजनाएँ तो बड़ी लुभावनी बनती हैं लेकिन उन्हे धरातल पर
उतारने में लोगों को नौकरशाही के अड़ंगों के आगे पसीना छूट जाता है । ऐसे में
सरकारी दखल कम से कम हो तथा स्वतंत्र इकाइयों को अधिकार दिया जाना चाहिए। अच्छे
रिकॉर्ड वाले एनजीओ को इसकी जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है।
देश में बुजुर्गों के सम्मान की परंपरा रही
है और हम हमेशा इसी बात पर नाज करते रहे हैं कि हमारे यहां नयी पीढी पुरानी पीढी
की उपेक्षा नहीं
करती बल्कि उन्हें पूरा सम्मान देती है और उनके अनुभवों की कद्र करती है।लेकिन बढते
औद्योगिकरण, उदार
अर्थव्यवस्था और पश्चिमी सभ्यता ने कुछ हद तक हमारी संस्कृति में सेंध लगा दी है। अब
ऐसे अनेक मामले देखे जा रहे हैं जहां बुजुर्गो को बोझ समझा जाने लगा है । उनका तिरस्कार तक किया
जाने लगा है। कुछ सीधे सीधे ऐसा करते हैं तो कुछ परोक्ष तौर पर उनकी अनदेखी करते हैं। ऐसी भी
संतानें मिल जायेंगी जो माता पिता के वृद्ध होते ही उन्हें या तो सड़कों पर
छोड़ देते हैं या फिर उन्हें वृद्धाश्रम में अकेले रहने को मजबूर कर
देते हैं।
पूरे
भारत में इस वक्त लगभग 500 वृद्धाश्रम
हैं, जिनमें
से कुछ ऐसे भी हैं जो वृद्धों की नि:शुल्क सेवा करते हैं । इनमें से कुछ सरकार से अनुदान प्राप्त हैं
तो कुछ स्वयंसेवी संस्थानों द्वारा चलाए जा रहे हैं ।दिल्ली के ‘गुरु
विश्राम वृद्धाश्रम’ में 100 से ज्यादा बुजुर्ग हैं और अधिकतर लावारिस रूप
में मिले परित्यक्त बुजुर्ग हैं, जिन्हें
रेलवे स्टेशन,
बस स्टॉप या फिर अस्पतालों से लाया गया । कई तो ऐसे हैं जिन्हें कुछ याद नहीं।
हालांकि यह भी आश्चर्य की बात है कि जिन संतानों ने इन्हें मरने के लिए सड़क पर छोड़ दिया था उनका
नाम यह कभी नहीं भूलते। केंद्र एवं राज्य सरकार ने भी बुजुर्गों के लिए वृद्धावस्था पेंशन,रेल,बस यात्रा टिकट में रियायत के साथ ही निशुल्क तीर्थ यात्रा जैसी कई योजनाएं शुरू की हैं। हाल ही
में सरकार वरिष्ठ नागरिकों का रखरखाव विधेयक -2007 संसद में पेश कर चुकी है। यह विधेयक
माता पिता
की देखभाल, वृद्धाश्रमों की
स्थापना और वरिष्ठ नागरिकों की संपत्ति और जीवन की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के
उद्देश्य से तैयार किया गया है ।ऐसे में सिर्फ एक दिन 21 अगस्त को ‘वरिष्ठ नागरिक दिवस’ मनाकर ही हमें अपनी जिम्मेदारियों को अंतिम नहीं समझ लेना चाहिये। इन बुजुर्गों पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है ताकि भारत अपने जिन मूल्यों के लिये पूरे विश्व में पहचाना
जाता है वे कहीं अतीत की बात बन कर नहीं रह जाये।
-फारूक आफरीदी
-फारूक आफरीदी
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