युवाओं को क्षमता और दक्षता के अनुरूप काम मिले !
लीजिए, भारत
विश्व का सबसे बड़ी युवा आबादी वाला देश बन गया है। संयुक्तराष्ट्र की ताजा रिपोर्ट के अनुसार कुल जनसंख्या के मामले में हालांकि,
भारत चीन से पीछे है, लेकिन 10 से
24 साल
की उम्र के 35.6 करोड़ लोगों के साथ भारत सबसे अधिक युवा आबादी वाला
देश है। युवाओं की यह
बढ़ती आबादी एक नए खतरे का संकेत है जिसे समझने की जरूरत है। सरकार ने इस आबादी को यदि
काम नहीं दिया तो स्थितियाँ विस्फोटक रूप ले सकती हैं। केंद्र सरकार हो या राज्य
सरकारें, सभी आज
तक् इन्हें रोजगार और काम के अवसर देने का सपना दिखाकर वोट बटोरती रही हैं। वोट बटोरने
के बाद इन्हें रोजगार से जोड़ना दूसरी बात है। यह नहीं भूलना चाहिए कि युवाओं की
रचनात्मक शक्ति देश का नवनिर्माण कर सकती है तो इनका खाली दिमाग विध्वंस की ओर मोड़
सकता है। राजकीय क्षेत्रों में रोजगार के अवसर सीमित हैं,
लेकिन निजी क्षेत्रों में अगर काम के अवसर नहीं जुटाये और बढ़ाए गए तो हालात को बेकाबू
होने से कोई रोक नहीं सकता।
आबादी की दृष्टि से चीन 26.9 करोड़ की युवा आबादी के साथ दूसरे स्थान पर है।जहां तक रोजगार का प्रश्न है तो वैश्विक उदारवाद का फायदा उठाते हुए चीन विश्व के बाजार पर छाया हुआ है । चीन अपनी जनशक्ति का अधिकतम सदुपयोग करने में आगे है। चीन का हर व्यक्ति उद्यमी है और इधर हम हैं कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ग्रामोद्योग के फार्मूले को खारिज करके आगे बढ़ना चाहते हैं। हमारे परंपरागत लघु और कुटीर उद्योग प्रोत्साहन के अभाव में विलुप्त होते जा रहे हैं। युवापीढ़ी उनसे लगभग पूरी तरह विमुख हो चुकी है और सफ़ेद कालर बनने को आतुर है। मुश्किल यह है कि युवाओं में आशाएँ तो बहुत जगा दी जाती हैं लेकिन उनके अनुरूप योजनाएँ नहीं बनाई जाती या क्रियान्वित नहीं की जाती जिससे असंतोष बढ़ता है जो कभी-कभी चरम सीमा तक पहुँच जाता है। युवाओं को परिणाम चाहिए।वे अपने बाजुओं की असीमित शक्ति का सदुपयोग होते देखना चाहते हैं।वे चाहते हैं कि उनमें जिस किसी क्षेत्र की क्षमता या दक्षता है, उसका समय रहते उपयोग हो। दुनिया में सबसे अधिक बेरोजगार युवा भी हमारे देश में हैं। युवाओं में जैसे-जैसे शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है, वैसे- वैसे ही बेरोजगारी की दर भी बढ़ रही है। वर्ष 2010 में 15 से 19 वर्ष की आयु वर्ग के 284 युवाओं और 30 से 44 वर्ष की आयु के 399 लोगों ने नौकरी न मिलने से आत्महत्या कर ली जो युवाओं के भविष्य की कुछ भयावहता की कहानी बयान करती है। यूपीए सरकार ने राष्ट्रीय युवा नीति-2014 को मंजूरी दी थी। इसका मुख्य उद्देश्य युवा वर्ग को क्षमता एवं दक्षता हासिल करने के लिए सशक्त बनाना था । इस युवा नीति में पांच परिभाषित उद्देश्यों और प्राथमिकता वाले 11 क्षेत्रों की पहचान की गई थी। इनमें प्राथमिक क्षेत्रों में शिक्षा, कौशल विकास, रोजगार, उत्पादक श्रम शक्ति का सृजन, उद्यमशीलता और सामाजिक न्याय जैसे विषयों को शामिल किया गया ।
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन ने वर्ष 2009-10 के आंकड़ों के आधार पर एक रिपोर्ट दी थी कि माध्यमिक स्तर की शिक्षा प्राप्त कर
चुके ग्रामीण युवकों
में बेरोजगारी दर पांच फीसदी
और युवतियों में करीब
सात फीसदी रही। शहरी क्षेत्रों के युवकों में
बेरोजगारी दर 5.9 फीसदी और महिलाओं में 20.5 फीसदी दर्ज की गई। इस
प्रकार शहरी क्षेत्रों में
युवकों की अपेक्षा युवतियों में बेरोजगारी दर करीब चार गुना अधिक है।
हायर सेकेंडरी
स्तर के ग्रामीण क्षेत्रों के युवकों में बेरोजगारी दर 7.8 फीसदी और युवतियों में 22.2 फीसदी दर्ज की गई। शहरी क्षेत्रों के ऐसे युवकों में बेरोजगारी दर 11 फीसदी और युवतियों में 19 फीसदी दर्ज की गयी। स्नातक या उससे आगे की पढ़ाई कर चुकी
युवतियों में बेरोजगारी दर युवकों की बेरोजगारी दर से लगभग दोगुनी है। मसलन ग्रामीण क्षेत्र
के स्नातक युवकों में बेरोजगारी दर 16.6 फीसदी और युवतियों में 30.4 के तमाम प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। डिप्लोमा एवं
सर्टिफिकेट धारकों के मामले में शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा ग्रामीण
क्षेत्रों में बेरोजगारी दर अधिक है। ग्रामीण क्षेत्रों में युवतियों में
बेरोजगारी दर युवकों के मुकाबले दोगुनी से भी अधिक है। सर्वेक्षण रिपोर्ट के
अनुसार ग्रामीण क्षेत्र के डिप्लोमा या सर्टिफिकेट धारक युवकों में
बेरोजगारी दर 21.4 फीसदी और युवतियों में 46.6 फीसदी और शहरी क्षेत्र के युवकों में बेरोजगारी की दर 12.8 फीसदी और युवतियों में 18 फीसदी दर्ज की गई।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार अपनी बड़ी युवा आबादी के साथ विकासशील
देशों की अर्थव्यवस्थाएं
नई ऊंचाई पर जा सकती हैं, बशर्ते
वे युवा लोगों की शिक्षा व स्वास्थ्य में भारी निवेश करें और उनके
अधिकारों का संरक्षण करें।यह
काम राष्ट्रीय नेतृत्व को करना है। युवा आबादी में 60 करोड़ किशोरियां हैं जिनकी अपनी विशेष
जरूरतें, चुनौतियां व भविष्य के लिए आकांक्षाएँ हैं। ‘द पावर आफ 1.8 बिलियन’ शीर्ष रिपोर्ट में
कहा गया है कि भारत की 28 फीसदी आबादी की उम्र 10 से 24 साल है। सबसे निर्धन देशों में युवा
जनसंख्या सबसे
तेजी से बढ़ रही है। भारत
एक ऐसा देश है जहां अभी भी करोड़ों परिवार गरीब और बीपीएल हैं जो फुटपाथ पर सोते
हैं। वे चमकते भारत में प्रवेश करने को आतुर हैं। उनके अपने सपने और चुनौतियाँ
हैं। इस समय वैश्विक स्तर
पर युवाओं की जनसंख्या अपने सर्वकालिक उच्च स्तर पर है। इस संदर्भ में हमें भारत के भविष्य
को लेकर चिंता होती है कि इससे निपटने की कोई कारगर रूपरेखा नहीं बनाई गई तो इसके
परिणाम क्या होंगे !
दूसरी ओर देश में इस साल दिसंबर तक इंटरनेट
उपभोक्ताओं की संख्या 30.2 करोड़ पहुंच रही है। यह संख्या साल दर साल 32 फीसदी की दर से बढ़ रही है। 'भारत में इंटरनेट-2014' रिपोर्ट इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ
इंडिया (आईएएमएआई) और आईएमआरबी
इंटरनेशनल द्वारा संयुक्त रूप से प्रकाशित की गई है। इसमें भी युवा सबसे आगे हैं और वे आई.टी में
अपना सुनहरा भविष्य खोज रहे हैं। यह गर्व की बात है कि आई.टी.में हमारे युवा विश्व
में अपनी क्षमता सिद्ध कर रहे हैं। बावजूद इन सबके आई.टी. में सारे युवाओं को नहीं
खपाया जा सकता। इसलिए हमें अन्य नए क्षेत्रों की भी तलाश करनी होगी। जून 2015 तक यह संख्या 21.6 करोड़ हो जाएगी। ग्रामीण भारत में पिछले
साल के मुकाबले इस साल इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या में 39 फीसदी की उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। भारत
विश्व में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या के मामले में तीसरे स्थान पर है। दिसंबर 2014 तक
अनुमान के मुताबिक उपभोक्ताओं की संख्या में इजाफा हुआ तो भारत अमेरिका
को पछाड़कर विश्व में दूसरे स्थान पर पहुंच जाएगा।
ग्लोबल वर्कप्लेस प्रोवाइडर ‘रीगस’ ने करीब एक सौ देशों के बीस हजार कर्मचारियों की
राय के आधार पर तैयार एक अध्ययन रिपोर्ट में भी रोजगार की अनिश्चितता का
जिक्र किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में करीब 25 फीसदी कर्मचारियों को नौकरी जाने का डर सताता रहता है. नौकरी जाने के डर
से करीब 35
फीसदी कर्मचारी रात को पर्याप्त नींद नहीं ले पाते हैं। इसके अलावा करीब 70 फीसदी भारतीय कर्मचारियों का मानना है कि देश की अर्थव्यवस्था में गिरावट के कारण
भी रोजगार की अनिश्चितता बढ़ रही है। ऐसे में रोजगाररत लोगों में भी आशा और
विश्वास का संचार करना होगा । दूसरी और शिक्षित बेरोजगार युवक बेरोजगारी की कुंठा में आए दिन आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे
हैं।
-फारूक आफरीदी
-फारूक आफरीदी
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