शनिवार, 6 दिसंबर 2014

शहरों की मूलभूत समस्याएं और स्मार्ट सिटी का सपना



शहरों की मूलभूत समस्याएं और स्मार्ट सिटी का सपना


       प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कई बार स्मार्ट सिटी के बारे में बात करते रहे हैं। चुनावी भाषणों में भी उन्होंने देशवासियों को 100 स्मार्ट सिटी का सपना दिखाया था।भारत में स्मार्ट सिटी बनाने को लेकर सिंगापुर ने मोदी सरकार के सामने इच्छा भी जाहिर की है। मोदी सरकार ने भारत में टियाजिन नॉलेज सिटी जैसी स्मार्ट सिटी बनाने को लेकर अपनी रुचि दिखाई है वित्त मंत्री अरुण जेटली ने स्मार्ट सिटी के लिए 7000 करोड़ रुपए के बजट का प्रावधान भी किया है और इसमें एफडीआई अर्थात प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की शर्तों में ढील देने की बात की है। योजना के तहत स्मार्ट सिटी का विकास महानगरों और बड़े शहरों के उपनगर के तौर पर किया जाना है। इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को शहरों की विश्वस्तरीय सुविधा, रोजगार आदि उपलब्ध कराना और दिल्ली जैसे शहरों में बढ़ती भीड़ को नियंत्रित करना है। मोटे तौर पर इसके उद्देश्यों को लेकर कोई संकट दिखाई नहीं देता।
यह माना जाता है कि शहरों की जितनी अधिक प्रगति होती है, वहां आर्थिक अवसरों की उपलब्धता उतनी ही अधिक होती है। यह  भी माना जाता है कि शहर किसी भी राष्ट्र के विकास के आधार स्तंभ होते हैं। जैसे-जैसे शहरों का विकास होता है, वैसे-वैसे उसके साथ नया बाजार भी तैयार होता है। एक अनुमान के अनुसार विश्व की 50 प्रतिशत जनसंख्या शहरों एवं कस्बों में निवास करती है। भारत विश्व के इस औसत प्रतिशत से काफी नीचे, मात्र 30 प्रतिशत पर है। परंतु भारत के समृद्धतम राज्य गुजरात एवं महाराष्ट्र में शहरीकरण का औसत विश्व के औसत 50 प्रतिशत के आस-पास है जबकि भारत के सबसे गरीब राज्य जैसे  असम एवं बिहार में शहरीकरण का औसत 10 प्रतिशत से भी कम है।अन्य राज्य भी कमोबेश इसी स्थिति में हैं।
       शहरों के विकास को लेकर किसी को कोई एतराज नहीं हो सकता लेकिन किसी भी चीज का बिना सोचे समझे अंधानुकरण करना हमेशा गर्त की ओर ले जाता है। ऐसे में सरकार की गंभीर ज़िम्मेदारी बनती है कि देश के हालात पर गौर करने के बाद ही कोई फैसला किया जाए । आनन-फानन में फैसले ना हों। आज हमारे शहरों की हालत किसी से छुपी नहीं है कि वहाँ न तो शौचालयों की पर्याप्त सुविधा है ना गटर लाइनें हैं । पानी की पुरानी और सडी हुई लाइनों के कारण बीमारियाँ,शहरों की गंदगी, प्रदूषण की तेजी से बढ़ती समस्या  नागरिकों और कीमती पशुधन को जकड़ रही है। अधिकांश शहरों को तो स्वच्छ पेयजल की किल्लत से जूझना पड़ रहा है। नदियों को आपस में जोड़ने की योजना अभी तक सिरे नहीं चढ़ी । ऊपर से बिजली संकट जब चाहे खड़ा हो जाता है और हम बेबस होकर रह जाते हैं। इनके  स्थायी समाधान खोजने में हम अब तक विफल ही साबित हुए हैं । विभिन्न राज्यों मे उपलब्ध अरबों-खरबों के विपुल प्राकृतिक संसाधनों का वैज्ञानिक तरीके से दोहन करने के लिए हम अन्य मुल्कों का मुंह ताकते हैं । ऐसे में हम कैसी स्मार्ट सिटी इस देश को देना चाहते हैं ,यह एक विचारणीय प्रश्न है ।
       यह सही है कि आज हमारे यहाँ अंग्रेजों को मात देने वाली अंग्रेजी बोलने वालों की  क्षमता और सस्ती श्रमशक्ति ने वैश्वीकरण के दौर में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को देश में व्यवसाय करने के प्रति आकर्षित किया है। पिछले दो दशकों में भारत दुनिया का सबसे बड़े प्लेसमेंट सेंटरों में से एक बन गया है। वैश्वीकरण का लाभ उठाने के मद्देनजर जरूरी है कि शहर सुनियोजित रूप से विकसित हों। कौन नहीं चाहेगा कि शहर आधुनिक बुनियादी सुविधाओं, यातायात और संचार साधनों से सुसज्जित हों लेकिन इसके लिए  शहरों में विकास की मूलभूत संरचना, मानव संसाधन के बेहतर उपयोग, जीवन की मूलभूत सुविधाओं तथा सुरक्षा कसौटियों के लिए सुनियोजित प्रयास करना आवश्यक होगा।इस लिहाज से देश के ज्यादातर शहरों में नवीनीकरण और वर्तमान व्यवस्थाओं में आमूल-चूल बदलाव लाने की जरूरत है।
       दूसरी ओर हम इससे आँखें नहीं मूँद सकते कि हमारे लगभग सभी शहर बेतहाशा अतिक्रमणों की समस्या से जूझ रहे हैं। भू-माफिया बुरी तरह से समाज पर भारी पड़ रहे हैं और उन्हे पुलिस,प्रशासन और राजनेताओं का वरदहस्त प्राप्त है। गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों के पास रहने को अपने मकान तक नहीं हैं और बिल्डरों, नगरीय विकास प्राधिकरण तथा हाऊसिंग बोर्ड के मकान लेना उनकी पहुँच से बाहर होता जा रहा है । बैंक लोन की ब्याज दरें भी तेजी से बढ़ती ही जा रही, रियायती दर की बात तो दरकिनार और  जनता के सामने आसन्न समस्याओं के निदान की तो बात ही छोड़िए। बिचौलियों की जबर्दस्त बन आई है। उनके बिना कोई कारोबार हो ही नहीं सकता।अनपढ़ों की संख्या कम होने का नाम नहीं लेती। ऐसे में स्मार्ट सिटी का सपना साकार करना दूर की ही कौड़ी लगती है। सरकार पहले इनका हल ढूंढेगी या स्मार्ट सिटी का अपना सपना पूरा करेगी,इसपर विचार करना ही होगा अन्यथा वही हश्र होगा जैसे अन्य योजनाओं का अब तक हुआ । -फारूक आफरीदी       

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