बालिका सम्मान का फैसला
अच्छा, अमल भी सही हो
यह
एक स्वागत योग्य फैसला है कि अगले साल 24 जनवरी को ‘राष्ट्रीय
बालिका दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा।देखने-सुनने में इससे अच्छा कोई
फैसला नहीं हो सकता। दिक्कत यह है कि हम जिसे एक दिवस के रूप में मनाते हैं उसकी
परवाह भी एक दिन से नहीं की जाती।आज देश ही नहीं पूरे संसार में बालिकाएँ गौरवशाली
मुकाम हासिल कर रही हैं। अब ऐसा कोई क्षेत्र नहीं रह गया जिसमें बालिकाएँ पीछे
हों।सामाजिक मानसिकता को बदलने में वे अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं। हम
जितने भी रिजल्ट उठाकर देख लें, यही साबित होता है कि बालकों के मुक़ाबले बालिकाएँ बाजी
मार रही हैं। अध्ययन में उन पर हमारीकम मेहनत के बावजूद बालिकाओं के नतीजे बालकों
से बेहतर सामने आते हैं। अगर ‘पराया धन’ की मानसिकता से मुक्त होकर हम बालकों के समान मेहनत
करें तो वे परिवार और खानदान की ही नहीं बल्कि प्रदेश एवं देश का गौरव बढ़ाने में
सबसे आगे दिखाई देंगी।
राज्य सरकार ने राष्ट्रीय बालिका दिवस
पर 10 जिलों को गोद लेकर वहाँ बालिका उत्थान करने का संकल्प लिया है। अब इस संकल्प
को साकार करने के लिए कमर कसनी होगी।कहीं यह दिवस अन्य दिवसों की भांति औपचारिक
मात्र बनकर नहीं रह जाए।जब तक सरकार में बैठे हमारे जनप्रतिनिधि और सरकार में बैठी
नौकरशाही सख्ती के साथ दिये गए टास्क को ईमानदारी से अमली जामा नहीं पहनायेगी तब
तक सच्चे परिणामों की उम्मीद करना फिजूल साबित होगा।
एक रिपोर्ट के अनुसार भारत पिछले दस सालों में कन्या हत्या के
कारण 3 मिलियन लड़कियों का जीवन खो चुका है जबकि बालकों की मृत्यु का आंकड़ा 1
मिलियन का है।भारत
के जनसंख्या आयुक्त और महापंजीयक का कहना है कि 1981 में लड़कियों की संख्या 1000 लड़कों के मुकाबले में 960 थी जो अब गिरकर 927 पर आ गई है। पंजाब और कुछ अन्य उत्तरी
राज्यों में तो यह संख्या 780 तक
गिर गई है। जनसंख्या आयुक्त और महापंजीयक के शब्दों में ‘पंजाब के हाथ खून से रंगे है’। भारत में लगभग 30,000
डॉक्टर दौलत के लालच में तकनीक का
दुरूपयोग कर रहे हैं। आठ वर्ष पूर्व सरकार ने एक क़ानून पारित कर भ्रूण परीक्षण पर
प्रतिबंध लगा दिया था लेकिन इस क़ानून पर अमल अब तक नहीं के बराबर है।केंद्र सरकार में स्वास्थ्य
और परिवार कल्याण विभाग के संयुक्त सचिव इस तथ्य से सहमत हैं। उनका कहना है, 'देश में 22,000 ऐसे क्लीनिक हैं जहाँ इस प्रकार के परीक्षण
कराए जा सकते हैं। हमारे पास इतने साधन नहीं कि हम इन पर निगरानी रख सकें। लड़की को अवांछित
बनाने वाले सामाजिक परिवेश को ही हमें बदलना होगा। कल्याणी मेनन कहती हैं कि आंध्र
प्रदेश, राजस्थान और मध्य
प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में सरकार ने दो से अधिक बच्चे रखने वाले माता-पिता को
कुछ अधिकारों
से वंचित करने की नीति अपनाई। यह
मानव अधिकारों का हनन है। देश भर में बालिकाओं को लेकर जो हालात बने हुए है इनसे
निपटने के लिए बहुत गंभीरता से कदम उठाने होंगे।
राज्य सरकार जल्द ही ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ कार्यक्रम शुरू करने जा रही
है।ऐसा करना हर सरकार का फर्ज है। पिछली कांग्रेस सरकार ने भी इसकी शुरुआत की थी।
बहरहाल,कन्या भ्रूण हत्या रोकने,गिरते
लिंगानुपात को सुधारने,बेटियों को सम्मान दिलाने,शिक्षा के स्तर को सुधारने के साथ उनकी सुरक्षा के माकूल प्रबंधों पर
गंभीरता से ध्यान देना होगा। फिलहाल सरकार ने जयपुर,
झुञ्झुनू, सीकर, करौली, धौलपुर, दौसा, अलवर, भरतपुर,सवाई माधोपुर और श्री गंगानगर सहित जिलों का
चयन किया है। देश भर में चयनित 100 जिलों में राज्य के ये 10 जिले हैं। यह शुभ
संकेत हैं कि इस योजना के तहत समाज में बालिकाओं की योग्यता को सम्मान दिलाने के
उद्देश्य से खेल, सामाजिक-सांस्कृतिक,
सूचना, विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र की उपलब्धियों के लिए
पुरस्कार एवं प्रशस्ति-पत्र देकर सम्मानित किया जाएगा। योजना के तहत प्रमुख
मार्गों, भवन, चौराहों, पार्क आदि का नामकरण बेटियों के नाम पर होगा। यहां कहना प्रासंगिक होगा
कि जो बालिकाएँ पहले से उल्लेखनीय योगदान करने में अग्रणी रहीं हैं, उन्हें विस्मृत नहीं किया जाना चाहिए चाहे वह किसी भी वर्ग, समुदाय, भाषा या धर्म से संबंधित हों। सर्व धर्म
समभाव इस देश की समृद्ध संस्कृति रही है। स्कूल, कालेज और
विश्वविद्यालयों के साथ बालिकाएँ किसी भी क्षेत्र में अपना दमखम बताएं, वे समान की हकदार हैं।
बेटी का जन्मोत्सव इस रूप में मनाया जाए जिसमें समाजके सभी वर्ग, समुदाय और धर्म के लोगों की
सक्रिय भागीदारी हो और वह केवल सरकारी तमाशा बनकर ना रह जाए। ऐसा होने पर
सर्व-समाज की मानसिकता में बदलाव आ सकेगा।बालिकाओं से जुड़े अपराधों और शिकायतों के
लिए विशेष पोर्टल और सेल बनाने मात्र से ही काम नहीं चलेगा बल्कि उसकी कड़ी मानिटरिंग
भी जरूरी है। स्कूलों और कालेजों में बालिकाओं को जहां पुरुष शिक्षकों द्वारा
छेड़खानी और यौन शोषण से संबंधित शिकायतें मिलती हैं वहाँ अविलंब कदम और मामला दर्ज
कर कार्यवाही अंजाम देने की जरूरत है। ग्राम पंचायत से लेकर जिला स्तर पर कोई
एजेंसी हो जिसमें सामाजिक कार्यकर्ता भी सम्मिलित हों।राजनीतिक दखलंदाज़ी बिलकुल ना
हो तथा पुलिस का रवैया सहानुभूति का हो लापरवाही या गैर-जिम्मेदाराना कतई ना हो, तब बात बनेगी।बालिका के साथ नाइंसाफी और असमानता का व्यवहार कदापि ना हो, इसकी पक्की गारंटी मिले।यद्यपि कहा जा रहा है कि इस योजना को कारगर ढंग
से लागू करने के लिए पुलिस, महिला एवं बाल विकास विभाग, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग, शिक्षा, पंचायत राज एवं ग्रामीण विकास विभाग, चिकित्सकों की
संस्था और एनजीओ को साथ लिया जाएगा,लेकिन सभी को मिलकर पूरे
समन्वय से काम करना होगा तभी इस योजना के अच्छे परिणाम सामने आएंगे। राजस्थान देश
के अन्य राज्यों के लिए मिसाल बने तो राजस्थान की जनता गर्व करेगी। फिलहाल तो
राजस्थान भी भ्रूण हत्याओं वाले प्रदेशों में शुमार किया जाता रहा है। इस कलंक से
मुक्ति के लिए ना केवल गंभीर पीआरएवाईएएस जरूरी हैं बल्कि हमें इस तस्वीर को भी
बदलना पड़ेगा और एक नए इतिहास की रचना करनी होगी जहां बालिका और स्त्री का सम्मान
हो। ऐसा करने में सरकार तो पैसा खर्च कर रही है हमें सबको मिलकर योजना को सही दिशा
तक ले जाने में योगदान करना है और हमारे मनों में बालिकाओं को लेकर जो दूषित और
कलुषित विचार हैं उनका दमन करना है।अगर ये काम हम सब मिलकर दिल से करेंगे तो मंजिल
दूर नहीं। इससे हमारा गौरव बढ़ेगा और बालिका एवं स्त्री की गरिमा को सम्मान मिलेगा।
देश के विभिन्न राज्यों में बालिकाओं के उत्थान को लेकर भांत-भांत की योजनाएँ चलाई
जा रही हैं और उन पर करोड़ों अरबों रुपये खर्च किए जा रहे हैं । इससे बेहतर यही
होगा कि राष्ट्रीय स्तर पर एक साथ अभियान चलाया जाए और उसकी प्रगति की स्वतंत्र
एजेंसी से समीक्षा करवाई जाए। इसमें फिसड्डी राज्यों के जिम्मेदार विभागों के
खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाए और गैर-ज़िम्मेदारी के लिए उनके वेतन से वसूली की जाए
चाहे कितना ही बड़ा अफसर क्यों ना हो। -फारूक आफरीदी
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