शनिवार, 6 दिसंबर 2014

समाज को कहाँ ले जाएगा यह नशा



समाज को कहाँ ले जाएगा यह नशा

              शराब का व्यापार तेजी से फलता फूलता जा रहा है। इस कारण समाज में जहाँ अनेक विसंगतियां पैदा हो रही हैं वहीं उसके सेवन के शिकार लोगों की मौतों का आंकड़ा भी बढ़ता जा रहा है । शराब के निर्धारित ठेकों के इतर अवैध रूप से भी खूब शराब बिक रही है और सरकारी मशीनरी उस पर काबू पाने में विफल साबित हो रही है। कभी-कभार कुछ शराब पकड़ी भी जाती है लेकिन असली अपराधी पकड़ में नहीं आते। प्रधानमंत्री मोदी जिस गुजरात राज्य से आते हैं वह गांधीजी  का प्रदेश है और जिसे दुनिया एक आदर्श मानती है । गुजरात में एक लंबे अरसे से शराबबंदी है और वहाँ कभी यह नहीं कहा गया कि विकास के लिए शराब का व्यापार जरूरी है और ना ही वहाँ कभी शराबबंदी समाप्त करने की आवाज़ उठी। ऐसे में क्या इस बात पर विचार नहीं किया जाना चाहिए कि सभी राज्यों में इस सामाजिक बुराई से जुड़े व्यापार को अलविदा कह दिया जाए। इधर हाल ही केरल जैसे एक छोटे राज्य ने भी शराबबंदी लागू करने का क्रान्तिकारी फैसला लिया है जो निश्चय ही अनुकरणीय है।
       राजस्थान में जनता राज में शराबबंदी के बारे में प्रयोग भी हो चुका है।उस समय सरकार में कांग्रेस मूल के मास्टर आदित्येन्द्र वित्तमंत्री थे और उनका गांधीजी के सिद्धांतों में अटूट विश्वास था । मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत के रहते यह उनका ही दबाव और साहस था ।यदि संकल्प दृढ़ हो तो फिर कदम उठाने में कोई हिचक नहीं होती। दुर्भाग्यवश सरकार अपने अंतरद्वन्द्वों के कारण ढाई वर्षों में ही धराशायी हो गयी,लेकिन उस कदम को हमेशा सराहा जाएगा। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अनुयाई गोकुल भाई भट्ट और सिद्धराज ढ़ड्ढा एवं उनके साथियों की अगुवाई में प्रदेश में आंदोलन हुए, शराब की दुकानें बंद करने के लिए धरने दिये गए जिसमें निवृतमान मुख्य मंत्री अशोक गहलोत भी शामिल रहे हैं । यह प्रदेश इसका साक्षी है। अब तक प्रदेश में शराबबंदी लागू नहीं हो पाने के लिए काँग्रेस सरकार भी कम दोषी नहीं है,जिसके पास ज़्यादातर समय बहुमत रहा है। वर्तमान में केन्द्र एवं राज्य दोनों जगह बहुमत वाली भाजपा सरकारें हैं । इसमें इच्छा शक्ति मिल जाए तो समाज की इस बड़ी और जानलेवा बीमारी और अनैतिक प्रवृति  को जड़ से मिटाया जा सकता है । हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि शराब हमारी सशक्त और ऊर्जावान युवापीढ़ी को सबसे ज्यादा तबाह और बर्बाद कर रही है और इस तरह देश को कमजोर कर रही है।
       एक नज़र हम राजस्थान में शराब बिक्री के आंकड़ों पर डालेंगे तो पता चल जाएगा कि किस तेजी से शराब का धंधा बढ़ रहा है। आंकड़े बताते हैं कि वित्त वर्ष 2010-11 में राज्य सरकार को शराब की बिक्री से 2651.41 करोड़ रुपये प्राप्त हुए जो इसके अगले साल बढ़कर 3287 तक पहुँच गए। वित्त वर्ष 2012-13 में इस मद में आमदनी बढ़कर लगभग 4000 करोड़ और 2013-14 तक 4400 करोड़ तक पहुँच गयी। यह तो सरकारी आंकड़ा है और इसमें पड़ौसी राज्य से अवैध रूप से लाकर बैची जाने वाली शराब का आंकड़ा शामिल कर लिया जाए तो आंकड़ा कहाँ पहुंचेगा,इसका अनुमान लगाया जा सकता है।        
       राजधानी जयपुर के बाद जोधपुर प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। जोधपुर भी शराब की खपत में तेजी से अग्रसर है। आंकड़े बताते हैं कि जोधपुर में वर्ष 2011 में 42 लाख 70 हजार लीटर अँग्रेजी शराब, 1 करोड़ 5 लाख 57 हजार लीटर बीयर तथा 71लाख 42 हजार लीटर से अधिक देशी शराब बिकी जबकि वर्ष 2013-14 में 61 लाख 77 हजार लीटर से अधिक अँग्रेजी शराब, 1 करोड़ 26 लाख 32 हजार लीटर बीयर और 77 लाख 13 हजार लीटर देशी शराब की बिक्री हुई। इससे सिद्ध है कि सरकार की रुचि शराब बेचने में है और इससे लोगों को निरुत्साहित करने में नहीं है। इस तरह से मद्यनिषेध कार्यक्रम की बात एक प्रकार से बेमानी है,जो सरकार चलाती है और इस पर काफी धन खर्च किया जाता है। इस कार्यक्रम को चलाने का कोई अर्थ नहीं रह जाता है।
       यह किसी से छुपा हुआ नहीं है कि शराब पीकर वाहन चलाने की घटनाओं से हर साल सैंकड़ों लोगों की जानें चली जाती हैं। सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों में शराब पीने वालों का योगदान बढ़ता ही जा रहा है। शराब के कारण होने वाली गृह क्लेष की घटनाओं से परिवार टूटते जा रहे हैं और शराब पीकर पत्नी, माँ और बच्चों को मौत के घाट उतारने या स्वयं आत्महत्या जैसे कदम उठाने की घटनाएँ आम हैं। शराब पीकर उत्पात मचाने और लड़कियों के साथ छेड़छाड़,बलात्कार आदि गंभीर घटनाओं से पूरा देश भलीभाँति परिचित है। सभी जानते हैं कि शराब की बढ़ती दुष्प्रवृति के कारण अदालतों में मुकदमों की यकायक बाढ़ आ गई है जिससे घर-परिवार बर्बाद हो रहे हैं। सामाजिक सदभावना नष्ट होती जा रही है। इस दुष्प्रवृति को समय रहते नहीं रोका गया तो और अधिक गंभीर परिणाम भुगतने के लिए देश को तैयार रहना होगा।
       सरकारों के पास आमदनी के और भी बहुत से जरिये हैं। राजस्थान के पास खनिजों के रूप में अपार सम्पदा है । प्रतिदिन करोड़ों रुपयों की आय खनिज तेल भंडारों के दोहन से हो रही है । अगर जल्दी ही रिफाइनरी लगा दी जाए तो इस तेल के वाणिज्यिक विक्रय से असीमित आमदनी होने लगेगी। सरकार को इस प्रकार अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहिए जिससे आमदनी तेजी से बढ़े और वह नैतिक भी हो। शराब की आमदनी से विकास करने की अवधारणा समझ से बाहर है। गांधीजी के देश में शराब के  बढ़ते प्रचलन की बात भारतीय सभ्यता और संस्कृति से भी मेल नहीं खाती। ऐसे में देश और प्रदेश की  सरकारों को सोचना होगा कि हमें कमजोर, नशे करनेवाली एवं बुद्धिहीन-विक्षिप्त जनशक्ति चाहिए या ऐसी हो  जो स्वस्थ, शिक्षित, ज्ञान-विज्ञान वाली मजबूत जनशक्ति के रूप में देश का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गौरव बढ़ाए । 
-फारूक आफरीदी

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